मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम की विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के साथ प्याज की कीमतों में आये उछाल से आम उपभोक्ता का आक्रोश बढ़ गया है। इसी के चलते प्याज के बढ़ते दाम भी चुनावी मुद्दा बन गया। ठीक चुनाव की घोषणा के बाद ही प्याज के दाम में तेजी आ गई और 20-25 रूपये किलो बिकने वाला प्याज 80 रूपये किलो तक पहुंच गया। प्याज की कीमतों पर उपभोक्ताओं से ज्यादा राजनीतिक लोगों की आंखों में आंसू अधिक दिखाई दे रहे हैं। जब टमाटर 200 रूपये किलो तक पहुंच गया था तब भी आम उपभोक्ताओं में चेहरे उतने लाल नहीं हुये जितने कि तथाकथित रूप से मीडिया में दिखाया गया। और अब प्याज के दाम से उपभोक्ताओं से अधिक आंसू राजनीतिक लोगों के निकल रहे हैं। जबकि होना यह चाहिये था कि प्याज की कीमत क्यों बढ़ रही है और इस पर अंकुश लगाने के लिये क्या किया जा सकता है ? चर्चा इस बात पर होनी चाहिये थी।
असलियत यह है कि अनियमित बरसात के कारण प्याज की फसल प्रभावित हुई जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। यदि पिछले वर्षों में सितम्बर से नवम्बर के दौरान प्याज की कीमतों का विश्लेषण करें तो यह स्वत: ही स्थिति स्पष्ट हो जायेगा कि इन महीनों में प्याज के दाम हर साल बढ़ जाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि रबी के मौसम में उत्पादित प्याज का स्टाक लगभग इन्हीं महीनों में समाप्त हो जाता है। खरीफ के मौसम की प्याज भी नवम्बर के बाद ही बाजार में आती है। मांग और आपूर्ति में अंतर होने के कारण दाम बढ़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन चुनाव के कारण इसे मुद्दा बनाया गया है।
रबी और खरीफ फसलों के बीच मौसमी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए, सरकार रबी के मौसम की प्याज खरीद कर प्याज का बफर स्टाक रखती है। वर्ष 2022-23 में बफर स्टाक 2.5 लाख मीट्रिक टन था जो इस वर्ष बढ़ाकर 7 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है। अब तक 5.06 लाख मीट्रिक टन प्याज की खरीदी की जा चुकी है और शेष करीब 2 लाख मीट्रिक टन की खरीदी की प्रक्रिया जारी है।
किसान अपनी फसल तो व्यापारियों को अथवा मंडी में ही बेचता है। किसानों द्वारा जिस मूल्य में उपज बेची जाती है, उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे जाने वाले मूल्य में काफी अंतर होता है। ठीक इसके विपरीत जब उत्पादन अधिक हो जाता है और मांग की तुलना में बाजार में आपूर्ति अधिक हो जाती है जिसके कारण मूल्य बहुत कम हो जाते हैं जिससे किसानों को फसल की लागत भी नहीं मिल पाती और मंडी तक उपज को लाना महंगा पड़ जाता है। कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ दें तो किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। इसलिये सरकार को इस दिशा में विशेष प्रयास करने चाहिये ताकि अधिक समय तक भंडारण कर नहीं रख सकने वाली उपज का किसानों को उचित कीमत मिल सके। सरकार भी चाहती है कि किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस प्रयास नहीं किये गये हैं। भंडारण और फल व सब्जी प्रसंस्करण उद्योगों की अधिक संख्या में स्थापना इस दिशा में एक सार्थक कदम हो सकता है लेकिन ये सहकारिता के आधार पर होना चाहिये जिसमें किसानों की भी भागीदारी होनी चाहिये। तभी किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार होगा |