टिमरनी विधानसभा में त्रिकोणीय संघर्ष

 

अनोखा तीर, हरदा। नामांकन फार्म उठाने के बाद विधानसभा चुनाव में टिमरनी विधानसभा में अब 7 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा के संजय शाह और उन्हीं के भतीजे कांग्रेस के अभिजीत शाह का हुआ था। जिसमें चाचा संजय शाह कुछ मतों से जीत गए थे। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में अभी तक टिमरनी की तस्वीर साफ नहीं हो पाई है, क्योंकि इन बीतें पांच सालों में जयस संगठन के माध्यम से कार्य करने वाले रमेश मसकोले विधानसभा चुनाव के लिए पांच वर्षों से मेहनत कर रहे थे और अब वह निर्दलीय चुनाव मैदान में है। इसलिए ऐसा लग रहा है कि इस बार चाचा-भतीजे के इस मुकाबले में मसकोले भी मजबूती से मौके पर चौका लगाने की फिराक में नजर आ रहे है। आदिवासी बाहुल्य इस विधानसभा में यह सीट आदिवासी वर्ग के लिए ही आरक्षित है। मकड़ाई राजघराने से संजय शाह और कांग्रेस के अभिजीत शाह आते है। बीते १० वर्षों से भाजपा के विधायक संजय शाह ही क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे है। उन्हें जब २०१३ में भाजपा ने टिकिट नहीं दिया था तब वह निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते थे। उनका मजबूत पक्ष कहा जाए तो उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा सरकार से जो-जो अपने क्षेत्र के लिए सौगातें चाही थी वह उन्हें प्राप्त हुई है। सिराली को उपज मंडी से पूर्ण मंडी का दर्जा दिलाना, सिराली को नगर परिषद का दर्जा दिलाना, सिराली में कॉलेज की स्थापना करना, रहटगांव को नगर परिषद का दर्जा दिलाना और छीपानेर स्थित नर्मदा नदी पर पुल निर्माण जैसे बड़े कार्य उनके सफल कार्यकाल की श्रेणी में आते है। लेकिन यदि उनके नकारात्मक पक्ष की बात कहीं जाए तो कुछ लोगों को यह लगता है कि यह एक रिजर्व व्यक्तित्व वाले व्यक्ति है। एकदम से घुल मिलकर बात नहीं कर पाते। हमारे काम के समय पर फोन नहीं उठा पाते जैसी कुछ बातें है जो उनके पक्ष में नहीं जाती है। वहीं दूसरी ओर हम कांग्रेस प्रत्याशी अभिजीत शाह की बात करें तो वह एक युवा चेहरे है। बीता चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने विधानसभा क्षेत्र में बीते पांच वर्षों में समय समय पर जनसमस्याओं को दूर करने के लिए आंदोलनों का सहारा लिया है। यदि अब हम उनके नकारात्मक पक्ष की बात करें तो पिछले चुनाव में कुछ बुजुर्गों का यही कहना था कि युवा लड़का है, कैसे राजनीति करेगा, ज्यादा जोश में होश खो बैठेगा जैसी बातें कही गई थी। अब हम निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव मैदान में उतरे रमेश कुमार मसकोले की बात करें तो वह आदिवासी वर्ग में एक जाना पहचाना नाम है। बीते दिनों हुए आदिवासी संगठन के कार्यक्रम में जो उन्होंने एक मंच पर आदिवासियों को लाने का काम किया है उसी का कारण है कि त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति निर्मित हो रही है। वह पूर्व में शासकीय नौकरी में सेवारत थे। उन्होंने पूर्व विधायक डॉ. आरके दोगने का पीए बनकर भी कार्य किया है। इसलिए उन्हें राजनीति का एक अच्छा अनुभव है। यदि हम उनके नकारात्मक पक्ष की बात करें तो श्री मर्सकोले ने अपनी अत्याधिक पहचान आदिवासी क्षेत्र में ही बनाई है। वहां से उन्हें एकतरफा फायदा होना कहा जा सकता है, लेकिन टिमरनी शहरी क्षेत्र और रेलवे लाईन के पार के छीपानेर तक के ग्रामों में एवं सिराली क्षेत्र में अभी उन्होंने वर्चस्व हासिल नहीं किया है। अभी चुनाव को १४ दिन शेष है। रोजाना राजनीति में समीकरण चेंज होते है। चुनाव परिणाम के बाद ही वास्तविक रुप से पता चलता है कि कौन कितने पानी में था। जनता का मिजाज कोई नहीं जान सकता। लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा इसका आंकलन करने में बड़े-बड़े राजनीतिक पंड़ित भी फेल हो जाएंगे।

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