उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय का 25 वां स्थापना दिवस समारोह

कृषि अपने आप में इतना व्यापक शब्द है कि इसे हम सीमाओं में नहीं बांध सकते। गेहूॅ, चावल, मक्का को खेती तो कोई भी किसान कर लेगा, लेकिन कृषि विषय लेकर पढ़ाई कर रहे छात्रों को इसमें रोजगार की असीम संभावनाओं को तलाशकर नए स्टार्टअप को मूर्त रूप देना होगा। साथ ही कृषि को पर्यटन से जोड़ दिया जाए तो किसान की आय दुगनी से तिगुनी हो सकती है। कृषि को रोजगारपरक बनाने में सिद्धहस्त, नामचीन वैज्ञानिक एवं कृषि वैज्ञानिक चयन मण्डल, नई दिल्ली के चेयरमैन डॉ. संजय कुमार ने बुधवार को यह बात कही। वे आर.सी.ए. के नूतन सभागार में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के रजत जयंती स्थापना दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कई चैंकाने वाले उदाहरण देते हुए बताया भारत में राजस्थान सहित कई उत्तर -पूर्वी राज्यों में वे सभी चीजें उत्पादित की जा सकती है, जिन्हें करोड़ों रूपये खर्च कर हम आयात कर रहे हैं। बुल्गेरिया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया को गुलाब का तेल निर्यात कर वह करोड़ों रूपये कमा रहा है। यही नहीं वहां बाकायदा ’रोज फेस्टिवल’ मनाकर गुलाब की खेती को आम जन-जीवन में प्रचारित भी किया जाता है।

इसी प्रकार फ्लोरीकल्चर में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। भारत में ट्यूलिप के फूल खिलते जरूर है, लेकिन पूरे विश्व में इसके बल्ब नीदरलैण्ड सप्लाई करता है। भारत खुद 15 करोड़ के बल्ब खरीदता है। जब यहां इसकी संभावनाएं टटोली गई तो लेह, करगिल में सफलता मिली। पांच वर्ष पूर्व बल्ब टेक्नोलाॅजी को वहां शुरू किया। ट्यूलिप और लीलियम दिल्ली से लेकर हर प्रांत तक लेह भेजने में सक्षम है। ट्यूलिप के बल्ब तैयार करने में लाहौल स्पीति का इलाका भी उपयुक्त है। बहुत जल्दी हम राष्ट्रपति भवन के ट्यूलिप गार्डन को स्वदेशी उत्पाद से महका सकेंगे।

उन्होनें कहा कि मधुमक्खी पालन में हम विश्व में सातवें स्थान पर है। राजस्थान की बात करें तो यहां श्रीगंगानगर में रोजवुड से उत्पादित शहद की काफी मांग रहती है। लाहौल स्पीति में उत्पादित शहद दो हजार रूपये किलो में बिकता है। कारण उस शहद में प्राकृतिक तौर पर हींग, गुलाब व अन्य उत्पादों की महक घुली रहती है। इसी प्रकार स्टीविया जो चीनी से 300 गुना मीठा होता है। इसका व्यापक बाजार तलाश कर स्टार्ट अप किया जा सकता है। इसी कड़ी में मौंकफ्रूट जो 40 हजार रूपये प्रतिकिलो बिकता है और केवल चीन में पैदा होता है। चीनी से 300 गुना मीठे इस फल को भारत में भी अनुकूल परिस्थितियों में पैदा करना मुमकिन है।

उन्होनें कहा कि हींग पर अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान का एकछत्र राज है। वहां से बमुश्किल 100 ग्राम हींग विधिक तरीके से मंगाकर लाहौल स्पीति में बोया गया तो उत्पादकता मात्र 1 प्रतिशत रही। धीरे-धीरे प्रयास कर जर्मीनेशन 90 प्रतिशत तक पहुंचाया। हिमाचल का यह इलाका हींग से सरसब्ज है। यही हाल केसर का है। जम्मू कश्मीर के पेम्पोर में तीन हजार हेक्टेयर में केसर की खेती होती है। तकनीक और टीश्यूकल्चर की मदद से हम देश के किसी भी राज्य में इसका उत्पादन ले सकते हैं। यही नहीं दालचीनी, मुलहटी, मिलेट पोल्ट्री फीड, औषधीय पौधों की खेती में रोजगार के अवसर भरे पड़े हैं। केवल नजर पैनी हो और कुछ कर गुजरने की जिद होनी चाहिये।

उन्होनें खासकर राजस्थान के संदर्भ में राय व्यक्त की कि यहां मोती की खेती, परफ्यूमरी की अपार संभावनाएं हैं। कृषि वैज्ञानिक, शोधार्थी कई बार शोध बीच में ही छोड़ स्टार्टअप में कूद पड़ते हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम कूप मण्डूक न बनें बल्कि तकनीक को राज्य शासन व अन्य राज्यों को साझा करें तभी हमारा देश आत्मनिर्भर बन सकेगा।

इससे पूर्व एम.पी.यू.ए.टी. के कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक ने विश्वविद्यालय के 25 वें स्थापना दिवस समारोह में विगत एक वर्ष के अपने कार्यकाल में हासिल उपलब्धियों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि एक नवम्बर 1999 को यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। ईंट-ईंट से ईमारत बनती है और यहां के सभी पूर्व अधिष्ठाता, शोधार्थी, वैज्ञानिक, कार्मिकों, विद्यार्थियों के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि विश्वविद्यालय देश की शीर्ष कृषि विश्वविद्यालय में शुमार है।

कुलपति ने बताया विश्वविद्यालय ने एक वर्ष में 10 पैटेंट हासिल किए जिनमें बाॅयोचार बनाने का यंत्र प्लास्टिक से वृक्षों में जल संरक्षण हेतु पाॅलीमर आदि शामिल है। 71 छात्रों को अमरीका, बैकाॅक व न्यूजर्सी प्रशिक्षण हेतु भेजा गया। आरम्भ में आर.सी.ए अधिष्ठाता डाॅ. एस.एस. शर्मा ने राज्यपाल माननीय कलराज मिश्र के संदेश का वाचन किया। संदेश में राज्यपाल ने कहा कि शिक्षण, अनुसंधान व प्रसार शिक्षा में एमपीयूएटी ने अपनी अलग पहचान बनाई है। यह शोध अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचना चाहिये।

डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, अधिष्ठाता डाॅ. लोकेश गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया तो सीटीएई, अधिष्ठाता, डाॅ. पी.के. सिंह ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव बंशीधर कुमावत, नियंत्रक विनय भाटी के अलावा पूर्व अधिष्ठाता, डायरेक्टर, वैज्ञानिक व बड़ी संख्या में छात्र-छात्राऐं मौजूद थे। आरम्भ में सरस्वती पूजन व कुलगीत व अन्त में राष्ट्रगान गाया गया।

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