भारत की इन 3 जगहों पर रावण की मृत्यु का जश्न नहीं मनाया जाता है शोक

हिन्दू धर्म दशहरे का त्यौहार सबसे बड़ा माना जाता है। इस दिन को विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। ये बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार माना जाता है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्म राम ने लंका के राजा रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी वजह से ये बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। इस बार दशहरा 24 अक्टूबर के दिन मनाया जाने वाला है।

देशभर में दशहरे का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी जगह रावण की मृत्यु का जश्न मना कर रावण दहन किया जाता है। लेकिन भारत की कुछ जगह ऐसी है जहां रावण की मृत्यु का जश्न नहीं बल्कि शोक मनाया जाता है। उन जगहों पर रावण दहन भी नहीं किया जाता है। इसको लेकर हर जगह अलग-अलग कारण बताए गए हैं। चलिए जानते हैं किन-किन जगहों पर शोक मनाया जाता है।

मध्यप्रदेश का मांडसौर

मांडसौर को रावण का ससुराल माना जाता है। उनकी पत्नी मंदोदरी का जन्म मंदसौर में ही हुआ था। इसलिए वह यहां के दामाद माने जाते हैं। ऐसे में यहां उनकी मृत्यु का जश्न नहीं शोक मनाया जाता है। उनकी पूजा की जाती है। खास बात ये है कि यहां पर उनकी 35 फीट ऊंची मूर्ति भी स्थापित है जहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं।

राजस्थान का मंडोर

राजस्थान के मंडोर में भी रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है। कहा जाता है कि रावण ने इसी जगह पर मंदोदरी से विवाह किया था। क्योंकि ये मंदोदरी के पिता की राजधानी थी। इसी लिए यहां के लोग भी रावण को उनका दामाद मानते हैं और उनकी पूजा भी यहां की जाती है। रावण का इस जगह पर काफी ज्यादा सम्मान माना जाता है। इस वजह से यहां रावण दहन नहीं किया जाता है।

उत्तर प्रदेश का बिसरख

उत्तर प्रदेश में स्थित बिसरख गांव में रावण का जन्म हुआ था इस वजह से इस जगह पर भी उनकी मृत्यु का जश्न नहीं मनाया जाता है। यहां के लोग उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं इस वजह से यहां उनकी पूजा भी की जाती है और उनकी आत्मा की शांति के लिए लोग प्रार्थना भी करते हैं। यहां भी दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं।

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