के पोरी शिवराज भईयो रहटगांव आई रयो ते!

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-: प्रहलाद शर्मा :-

रामकली सुबह से ही घर का काम काज निपटा कर अपना बैग तैयार कर रही थी। बच्चों के कपड़े, अपनी साड़ी सब फटाफट बैग में रख लिए थे। बेटा गजाधर कभी हां तो कभी ना कर रहा था। रामकली ने कड़क आवाज में पूछा गजाधर आखरी बार पूछ रही तू चल रयो की नी, तो थारा कपड़ा रखूं नी तो नी।

तभी बेटी गायत्री मोबाइल पर किसी से बात करते हुए आई।

मावसी मम्मी तो बैग तैयार करी रया ह, अरु दादी अगना म बठया रायड़ो कूटी रया।

हव म भी जाई रई , रनुबाई भी पावनी आई ते म न सोची म भी हुई आऊं फिर स्कूल शुरू हुई जायगी तो जानू नी होय ।

लेव मम्मी स बात करी लेव!

– कून आय ?

– झाड़़पा वाली रमा मावसी ।

– ओ म्हारी माय, अब या अरु काई कई रई, बसीज तो गंज देर हुई गई, दस बजे वाली मोटर भी निकली जाये, बोलते हुए रामकली ने मोबाइल ले लिया।

– तू ख भी अबी टेम मिल्यो फोन लगाना का लेन? ल छट पट बोली बकी द म्हारी मोटर को टेम हुई गयो, तीन दिन स आगे पीछे हुई रई थी आज तो मुहरत निकल्यो।

– म ख बोलन देय ते बोलू पेलम थारी बक बक तो बंद हुईजाए । ते तू जाई खा रई इत्ती हड़ बड़ म ?

– बाई घर अरु खा, ते तू नी आई रई ?

– के पोरई शिवराज भईयो रहटगांव आई रयो ते?

– ओ म्हारी माय, के वो कब आई रया, थारी कसम म ख नी मालूम नी तो जाती काई?

– असी तो तू जामाना भर की खबर रखे अरु या नी मालूम?

– थारी सौगंध म ख नी मालूम, तू ख कून न कई?

– कैईना की काई बात, म न तो अनोखा तीर अखबार म खबर पड़ी। रोटी पानी अरु कपड़ा लत्ता स निपटी न, म तो रोज आधा घंटा अखबार पढूं ते अपना आसपास अरु सब दूर की खबर मिली जाये।

– अनोखा तीर तो म्हारा घर भी आय, पर गायत्री का पापा अरु फिर गायत्री पढ़ना का बाद अड़ोस पड़ोस म चली जाये, पूरा अवार म नी मालूम कून कून ले जाय। ल तूं तो फटाक दिनी स बताई द शिवराज भईयो कब आई रया?

– या 19 तारीख क तो आई रया अरु सभी लाड़ली बहनों को सम्मेलन रख्यो ह।

– अच्छो रयो री भेन तू न फोन करी दियो नी तो म तो या दस बजे वाली मोटर स जा रई थी। अब चार दिन बाद जाऊंगी।

– हां दा वे अपना लेन तो आई रया अरु अपन ही नी जावा तो ? अरु थारी सासू बाई काई करी रया ?

– रायड़ा म माथो देई रया अरु काई करगा। ल आई गया भीतर।

– कून आय, पोरई थारी मोटर निकली जाये नी, तू तो फोन प गप्पा मारी रई।‌

– नी जाऊ अब, झाड़पा वाली बिचली आय।‌

– दिनगया स तो खूब फुदकी फुदकी फिरी रई थी, अरु रोटा भी थापी न रखी दिया अब काई पहाड़ टूटी गयो ?

– म ख नी मालूम थी कि शिवराज भईयो रहटागांव आई रया, वा तो अबी बिचली न कई।

– आई रया ते आय, तू तो थारी जा तू ख काई चुनाव लड़नू ?

– तुम भी कसी बात करो बाई, बिचली म फोन धरी रई, दिन म फुर्सत स लगाईगां ।

– कसी काई नेता हुन तो आता जाता रेय अपनो वहां काई काम, तू तो थारी जा।‌

– बाई तुम तो बड़ा मतलबी निकल्या, दादाजी का मरना का बाद तुम ख पेंशन कून देय, शिवराज भईयो, तुम ख फोकट म तीरथ कून ले गया शिवराज भईयो, गजाधर पेट म थो ते चार हजार रुपए कून न दिया शिवराज भईया न, जब म ख दर्द उठयो तो हरदा अस्पताल लैई जाना का लेन गाड़ी कून न भेजी शिवराज भईया न, गजाधर हुई गयो तै लड्डू का पैसा कून न दिया शिवराज भईया न, तुम ख वसी तो सब याद रेय की थारी माय न असी साड़ी दी थी थारी माय न असो नी करयो ऊसो नी करयो अरु यो सब भूली गया ?

– बस कर री छोरी, एक की अठारह बात पकड़ा रई, नी जानू तो मत जाये, म ख फालतू की रामायण मत सुनाये।

– अच्छा अब यो रामायण सुनानू हुई गयो, अरु जब सोयाबीन क इल्ली चट करी गई थी तो मुआवजो तो झट दिनी स लैई लियो थो, गई साल जराक हवा पानी म गहूं आड़ा तिरछा हुई गया था तो ओको मुआवजो कून न दियो थो शिवराज भईया न। तुम तो खाई न नुगरा बनी जाओ, फटी चप्पल पेनी न महुआ बिनन जाता था ते तुम्हारा ले चप्पल भी तो शिवराज भईया न दी थी। भूली गया, तुम न तो फट दिनी स बोली दी थी कि गायत्री क अब नी पढ़ावगा फिर ओका लेन साइकिल और स्कूल की फीस कून न दी शिवराज भईया न। गिनान बठीगा तो दिन छोटो पड़ी जायेगो।

– हव म्हारी माय सुनी ली अरु समझी गई, तू तो या बता कब आई रया रहटगांव?

– अरु तुम ख मालूम ह अब तुम्हारी पेनशन भी छः सौ नी हजार रुपए हुई रई ह । म ख भी हजार रुपया महीना मिलगा।

– सई म, की म्हारो मू बंद करना का लेन बोल रई। अरु तू ख काई का मिलगा हजार?

– झूठ काई लेन बोलू सच्ची मात म, तुम ख भी हजार, अरु म ख भी हजार। अरु एक बार नी बारा महीना, मतलब सासू बहू का मिलाई न चौबीस हजार मिलगा साल का।

– अरी वाह री रामकली तू न तो गजब की खबर सुनाई। थारा मू म घी शक्कर। ल फटाफट बता कब आई रया रहटगांव?

– या 19 तारीख क , लाड़ली बहनों का सम्मेलन म ।

– के वो तो म ख नी ले चलगी?

– म्हारा काई माथा प बठी न जाओगा , चली दिजो, वा तो मोटर लेन भी आयगी अरु छोड़न भी।

– अरे वाह रे शिवराज, भगवान तू ख जुग जुग जिवाय, बूढ़ों डोकरो बनाय, अरु हमेशा हमारो मुख्यमंत्री बनाय। ल म्हारी लाड़ली अब तो ढोकला बनाई ल।

– अब दिन डूबया बनाईगा अभी तो लपटयो रादी दियो, खाई लेव रोटा।

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