
दर्रा आदमख़ेल में रहने वाले 40 वर्षीय महमूद अफ़रीदी अपने दो बेटों और भाइयों के साथ अपने ही घर में एक छोटी सी फैक्ट्री में राइफ़ल में इस्तेमाल होने वाली गोलियों की मैगज़ीन बनाने का काम करते हैं.
यह महमूद अफ़रीदी की आमदनी का पुश्तैनी ज़रिया है. बचपन में जब वह स्कूल में पढ़ते थे, उस समय भी वह अपना आधा दिन अपने पिता के साथ इसी काम में लगाते थे और इसी वजह से वह दसवीं कक्षा तक भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके.
अब उनके बेटे भी इसी पेशे में लगे हुए हैं लेकिन महमूद चाहते हैं कि उनके बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त करें और कोई दूसरा काम करें, महमूद के अनुसार यह नामुमकिन नहीं है लेकिन मुश्किल ज़रूर है.
प्रांतीय राजधानी पेशावर से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित दर्रा आदमख़ेल, एक पूर्व क़बायली क्षेत्र है, यह इलाक़ा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे हथियार बनाने के लिए जाना जाता है.

इस क्षेत्र में घरों और बाज़ारों में हथियार बनाए जाते हैं. हथियारों का यह कारोबार यहां पिछले कई दशकों से चल रहा है लेकिन अब तक इस कारोबार को क़ानूनी दर्जा नहीं दिया गया है.
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