बैतूल पुलिस ने डिजिटल अरेस्ट के शिकार बुजुर्ग को बचाया

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– बुर्जु से हो रही  73 लाख रुपए की ठगी को रोका
अनोखा तीर, बैतूल। बैतूल में डब्ल्यूसीएल का एक रिटायर्ड बुजुर्ग चैतराम नरवरे तीन दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रहा लेकिन गनीमत ये रही कि परिजनों की सूचना पर पुलिस ने उसे सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार चैतराम नरवरे ठगों के जाल में फंसकर जिंदगी भर की जमापूंजी कुल 73 लाख रुपए ठगों को देने जा रहा था। मामले में कई बड़े खुलासे हुए हैं, ठगों ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया और चैतराम के बैंक खातों का इस्तेमाल टेरर फंडिंग के लिए होने की धमकियां दी। ठगों ने जिन 27 सिम कार्डों का इस्तेमाल किया वो असम से लिये गए थे, लेकिन खाड़ी देशों से इनका इस्तेमाल कर रहे थे। चैतराम के बेटे और भांजे की सजगता से समय रहते रेस्क्यू संभव हो पाया है। बैतूल पुलिस ने ०1 दिसम्बर की शाम सारनी थानाक्षेत्र के बगडोना स्थित एक होटल रूम में एंट्री की, जहां उन्हें डब्ल्यूसीएल के रिटायर्ड कर्मी चैतराम नरवरे दहशत की हालत में मिले। चैतराम 28 नवम्बर से ०1 दिसम्बर तक लगातार डिजिटल अरेस्ट रहे। जब पुलिस पहुंची तो चैतराम वीडियो और ऑडियो कॉल पर ठगों के साथ जुड़े हुए मिले। चैतराम ने बताया कि ठगों ने 28 नवम्बर के दिन उनसे संपर्क किया और बताया कि वो सीबीआई से बोल रहे हैं। चैतराम को बताया गया कि उनके बैंक खातों से 6 करोड़ रुपए का लेनदेन आतंकवाद के लिए किया गया है। पहलगाम हमले और दिल्ली कार ब्लास्ट के लिए उनके खातों के इस्तेमाल किया गया। यदि वे खुद की और परिवार की भलाई चाहते हैं तो जो कहा जा रहा है उसे फॉलो करें।
पीड़ित चैतराम रिटायरमेंट के बाद भोपाल में रह रहे थे। लेकिन ठगों का फोन आने के बाद वो परिवार को झूठ बोलकर घर से निकले। ठगों के निर्देश पर कैब बुक करके बैतूल के बगडोना पहुंचे और यहां होटल में रूम बुक किया। इसके बाद से ठगों ने उन्हें जाल में फंसाकर रखा। चैतराम के बैंक खाते में जमा 73 लाख की फिक्स रकम को उनके सेविंग खाते में ट्रांसफर करवाया गया और आरटीजीएस फॉर्म भी बुलवाए गए। चैतराम को दिन में केवल एक डेढ़ घंटे सोने की इजाजत थी, बाकी समय ठग उनसे सीबीआई अधिकारी बनकर पूछताछ करते थे। जब तीन दिनों तक चैतराम परिवार से झूठ बोलकर घर नहीं लौटे तो उनके बेटे और भांजे ने मिलकर बैतूल पुलिस से संपर्क किया। बैतूल से एक पुलिस टीम चैतराम के कॉल लोकेशन पर बगडोना रवाना हुई। दूसरी तरफ सारनी थाना पुलिस भी बगडोना के उस होटल में पहुंची जहां चैतराम डिजिटल अरेस्ट थे। पुलिस ने पहुंचते ही चैतराम को रेस्क्यू कर उन्हें ठगों से बचाया।
इस मामले में एसपी वीरेंद्र जैन ने बताया कि  पीड़ित चैतराम बागडोना की एक होटल के कमरे मे थे। यदि पुलिस कुछ और देर से पहुंचती तो शायद ठगों की योजना कामयाब हो जाती और चैतराम जिंदगी भर की जमापूंजी 73 लाख रुपए उनके हवाले कर चुके होते। ठगों ने पीड़ित को धमकाया था कि मुंबई के बैंक में तुम्हारा बैंक अकाउंट है और उससे करोड़ों का लेनदेन हुआ है। इस पैसों का उपयोग दिल्ली कार ब्लास्ट और पहलगाम हमले मे हुआ था। इन बातों से पीड़ित दर गया था और परिजनों से झूठ बोलकर यह कदम उठाया।
इस मामले में सबसे बड़ा सबक ये मिलता है कि यदि किसी भी नागरिक के पास कोई सीबीआई, पुलिस, इनकमटैक्स या अन्य विभाग का अधिकारी बनकर फोन करे तो तत्काल इसकी सूचना परिवार सहित पुलिस को दें और फ़ोन करने वालों के जाल में फंसने से बचें। बहरहाल चैतराम जैसी किस्मत हर किसी की नहीं होती है। ज्ञात हो कि देश में एक साल के भीतर  लगभग 1 लाख 40 हजार से ज्यादा ऑनलाइन ठगी और और डिजिटल अटेस्ट के मामले सामने आए हैं जिनमें से ठगी से बचे सिर्फ वही जिन्होंने समय रहते पुलिस से मदद ली। और यही डिजिटल अरेस्ट से बचने के सरल और सीधे उपाय  है।

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