रवि अवस्थी
एक राष्ट्र, एक चुनाव की मांग पुरानी है। 43 साल पहले चुनाव आयोग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इसका प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन तब बात बनी नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही इस दिशा में जतन शुरू किए और करीब एक दशक बाद वह दिन आया जब एक राष्ट्र, एक चुनाव से जुड़ा बिल देश के शीर्ष सदन लोकसभा में पेश हुआ. इसके पक्ष में 269 व विरोध में 198 मत पड़े. इसके साथ ही बिल को आगे के विमर्श के लिए जेपीसी में भेजने का निर्णय भी लिया गया… जेपीसी की रिपोर्ट के आधार पर अब संविधान में सशोधन की दिशा में काम होगा..सब कुछ ठीक रहा तो साल 2029 में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।
आजाद भारत में शुरुआती चार चुनाव एक साथ हुए. व्यवस्था में बदलाव हुआ 1967 में ,जब कहीं राज्य की विधानसभा को भंग करना पड़ा, तो कभी लोकसभा चुनाव ही पहले करा लिए गए। आलम ये हो गया कि अब देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होता ही है। हाल ही में महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभाओं के चुनाव हुए, अगले साल दिल्ली व बिहार की बारी है.. यह सिलसिला अनवरत रहने वाला है. हर साल होने वाले चुनाव न सिर्फ राज्यों बल्कि राजनीतिक दलों की माली हालत को भी प्रभावित करते हैं. प्रशासनिक तंत्र की उर्जा, आचार संहिता के चलते विकास कार्यों में बाधा सहित ऐसे कई कारण हैं, जिन्हें खत्म करने एक साथ चुनाव पर आम सहमति बनाने का जतन पूरी गंभीरता से किया जा रहा है. इस बिल को संसद में मिला बहुमत इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
एक ही बार में चुनाव की परिपाटी दुनिया के आधा दर्जन अन्य देशों में भी कायम है. भारत में इस दिशा में प्रयास के लिए बनी समिति ने भी इन देशों के अध्ययन के आधार पर अपनी रिपोर्ट दी इसके सुझावों पर अमल के लिए देश अभी सिर्फ एक पायदान आगे बढ़ा है राह में बाधाएं भी हैं लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि देश हित के इस काम में पीएम मोदी अपने मिशन में सफल होंगे।
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