नगर में एक मात्र उत्तर मुखी प्रतिमा, एक ही परिवार की 5 वी पीढ़ी कर रही लगातार सेवा
गजेन्द्र (सोनू) खंडेलवाल, भैरुंदा। तीन सौ से भी अधिक वर्ष पुरानी एक अति प्राचीन भगवान श्रीगणेश की उत्तर मुखी प्रतिमा नगर व क्षेत्र के श्रद्धालुओं के लिए विशेष पौराणिक महत्व रखती है। इस प्राचीन प्रतिमा के दर्शनों का लाभ लेने के लिए अब दूर दराज के श्रद्धालु भी पहुंचते है। गणेश चतुर्थी के मौके पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। ठीक दोपहर 12 बजे भगवान की आरती होती है और श्रद्धालुओं के द्वारा मंदिर का भोग अपने घर पर ले जाने के उपरांत पूजा-अर्चना प्रारंभ की जाती है। जानकारी के अनुसार आज से लगभग तीन सौ से भी अधिक वर्ष पूर्व नगर के गांधी चौक में एक अग्रवाल परिवार के यहां भवन निर्माण के समय खुदाई में यह प्रतिमा निकली थी। तब उस परिवार के द्वारा यहां के वर्तमान पुजारी गोपाल जैमिनी के बड़े पर दादाजी को इस प्रतिमा के पूजन पाठ का दायित्व सौंपा। भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना कर दी गई। तब से लेकर आज तक लगातार पांचवी पीढी के द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जा रही है। भगवान गणेश की अति प्राचीन प्रतिमा का स्थान इस नगर में बना हुआ है। इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है। परंतु जैसे-जैसे यह जानकारी श्रद्धालुओं को लगती जा रही है। वैसे-वैसे आस्था का सैलाब यहां उमड़ता जा रहा है।
उत्तर मुखी है गणेश प्रतिमा
उत्तर मुखी प्रतिमा के दर्शन करना अत्यंत ही सुख माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार धन-संपत्ति के स्वामी, कुवेर उत्तर दिशा में रहते है और धन की देवी लक्ष्मी को उत्तर दिशा प्रिय है और ऐसी स्थिति में लक्ष्मी जी के लेखाकार गणेश की प्रतिमा उत्तर मुखी हो तो यह एक दुर्लभ संयोग है। पौराणिक महत्वों के अनुसार भगवान गणेश की यह प्रतिमा अत्यंत फलदायी है। मंदिर के पुजारी गोपाल जैमिनी ने बताया कि यह प्रतिमा उत्तर दिशा की और मुख लिये धरती से निकाली गई थी। उत्तर मुखी होने के साथ-साथ इस प्रतिमा पर सिंदूर बदन है तथा काले पत्थर की अति प्राचीन प्रतिमा है। ऐसे भगवान गणेश की पूजन करने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि महा भारत के रचियता वेद व्यास ने उत्तर मुखी होकर ही गणेश जी से महा भारत को लिखबाना प्रारंभ किया गया था। महा भारत में भी भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा उत्तर मुखी गणेश ही पूजा की गई थी। उसके अतिरिक्त ऐसे कई ग्रंथ है। जिसमें उत्तर मुखी गणेश को हर संकटों का निवारण करने वाला बताया है। उत्तर मुखी प्रतिमा होने से इस मंदिर व प्रतिमा का महत्व और ज्यादा बड़ जाता है।
कष्टों को हरते है लंबोदर
जिस स्थान पर भी इस तरह की प्राचीन मंदिर व प्रतिमाएं विराजमान रहती है। वहां के भक्तों को कभी भी गंभीर परेशानियों का सामना नही करना पड़ता है। भक्त अपनी मनोकामना लेकर जब भी लंबोदर के दरबार में पहुंचते है तो वह खाली हाथ वापस नही लौटते है। भक्तों के कष्टों को भगवान गणेश के द्वारा हर लिया जाता है और उनका भक्त कभी भी परेशान नही होता। इसी लिए भगवान श्री गणेश को विघ्न विनाशक भी कहा जाता है।
बहुत ही कम स्थानों पर विराजित है उत्तर मुखी भगवान गणेश
जिस तरह से उत्तर मुखी भगवान गणेश का महत्व बताया गया है। उस लिहाज से भक्तों का जमावड़ा इस संपूर्ण भगवान गणेश दरबार में उमड़ता है। इसी का नजारा इस क्षेत्र के जिला मुख्यालय में भी देखा जा सकता है। सीहोर स्थित सिद्धी विनायक का दरबार यहां पर भी भगवान गणेश की उत्तर मुखी प्रतिमा विराजमान है। पूरे सीहोर को सिद्धपुर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा पूरे वर्ष भर लगा रहता है। इसी तरह मुंबई स्थित सिद्धी विनायक के दरबार में भी कुछ ऐसी स्थिति रहती है। यहां पर भगवान गणेश के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना गया है। गुआहाटी में स्थित टेकरी वाले गणेश जी, रणत भंवर के गणेश व इंदौर स्थित खजराना वाले गणेश मंदिर में भी उत्तर मुखी प्रतिमाओं का स्थान होने से इनका महत्व कुछ ज्यादा ही माना गया है। कुछ स्थानों पर ही सिद्ध प्रतिमाओं के विराजित होने से दूर-दूर के श्रद्धालु दर्शनों के लिए इन स्थानों पर पहुंचते है। नगर में भी उत्तर मुखी गणेश प्रतिमा का विराजमान होना यहां के श्रद्धालुओं के लिए गौरव की बात है। क्योंकि जिस प्रतिमा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते है परंतु नगर के नागरिक तो इतने सौभाग्य शाली है कि उन्हें सिद्ध प्रतिमा के दर्शनों का लाभ प्रतिदिन मिलता है।