एसआइ विकास पाटिल खुदकुशी केस को पुलिस ही दबाना चाहती है। बड़े अफसर स्वयं नहीं चाहते कि खुदकुशी की वजह सार्वजनिक हो। लिहाजा कथन और जांच के बहाने इस केस को आहिस्ता-आहिस्ता ठंडा किया जा रहा है। विजयनगर थाने में पदस्थ रहे सब इंस्पेक्टर (एसआइ) विकास पाटिल ने15वीं बटालियन स्थित हाईराइज इमारत में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी। घटना के कुछ ही देर बाद अफसरों ने खबर फैलाई कि विकास ने पारिवारिक कारणों से जान दी है। दूसरे दिन उनकी पत्नी ने यह कहते हुए अफसरों का मुंह बंद कर दिया कि उनकी मौत के जिम्मेदार अफसर हैं। घटना के दो दिन पूर्व सार्वजनिक रूप से अपशब्द बोलने पर विकास इतने दुखी हुए कि उसके बाद थाने नहीं गए। विकास को जानने वाले और बैचमेट ने भी दबी जुबान से अफसरों को वास्तविकता बताई लेकिन इसके बाद बयानबाजी बंद करवा दी गई।
दतिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारते ही दद्दा यानी डा. नरोत्तम मिश्रा खेमे के टीआइ रवींद्र पाराशर की छुट्टी कर दी गई। टीआइ पाराशर थाने में खूब मनमानी कर रहे थे लेकिन गृहमंत्री के करीबी का टैग लगने से अफसरों को अनदेखा करना पड़ता था। टीआइ ने भी अफसरों को रिपोर्टिंग तक करना बंद कर दी थी। गंभीर मामलों की जानकारी तो डीसीआर से पता चलती थी। पाराशर सेना से रिटायर होने के बाद पुलिस में भर्ती हुए हैं। तमाम दिग्गज निरीक्षकों को पछाड़ कर पहली पोस्टिंग में तेजाजीनगर थाने में पदस्थ हो गए। आयुक्त मकरंद देऊस्कर के स्पष्ट निर्देश हैं कि गंभीर मामलों की जानकारी वरिष्ठों को देना अनिवार्य है। मगर टीआइ एसीपी, एडीसीपी और डीसीपी को बताए बगैर एफआइआर करते थे। चुनाव संपन्न होते ही जोन-1 के डीसीपी आदित्य मिश्रा ने टीआइ को लाइन अटैच कर दिया। उन मामलों में जांच भी बैठा दी जिन्हें लेकर टीआइ पर उंगलियां उठ रही थी।
महिला अफसरों में वर्चस्व की लड़ाई, मुख्यालय पहुंची रिपोर्ट
खुफिया विभाग में पदस्थ दो महिला अफसरों के मध्य चल रहा द्वंद्व पुलिस मुख्यालय तक पहुंच गया है। वर्चस्व की इस लड़ाई में निचला स्टाफ पिस रहा है। दबदबा कायम रखने के लिए एक मुद्दे पर दो बार बैठकें होती हैं। इस मामले की पुलिस मुख्यालय में चर्चा हो रही है। अबोलापन एडीसीपी और एसीपी स्तर के अफसर में है। एडीसीपी की मुख्यालय से पोस्टिंग हुई है। पुलिस लाइन में पदस्थ एसीपी को आयुक्त मकरंद देऊस्कर ने मौखिक आदेश से बैठाया है। विदेशी पंजीयन, आर्म्स लाइसेंस, कालोनी सेल, बिल्डर लाइसेंस, फायर एनओसी जैसे प्रमुख काम एसीपी के जिम्मे ही हैं। आसूचना से संबंधित कामों को लेकर होने वाले दैनिक कार्यों में भी तनातनी होती है। जिन मुद्दों को लेकर एडीसीपी बैठक लेकर निर्देश देती हैं एसीपी भी उन्हीं मुद्दों पर बैठक बुला लेती है।
निर्वाचित विधायकों के आगे-पीछे घूम रहे अफसर
शहर में पदस्थ अफसर असमंजस की स्थिति में हैं। चुनाव पूर्व के जमे समीकरण बिगड़ चुके हैं। नए सिरे से जमावट करनी पड़ रही है। लिहाजा निर्वाचित विधायकों के आगे-पीछे घूमना पड़ रहा है। ज्यादातर टीआइ-एसीपी और एडीसीपी चुनाव पूर्व ही आए हैं। अनुमान था कि इस बार कांग्रेस की सरकार बन रही है। लिहाजा भाजपा नेताओं से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखा। चुनाव के दौरान भी व्यवहार में रूखापन रहा। जैसे ही नौ विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक चुने, हवाइयां उड़ गई। रातोंरात संपर्कों को खंगालना शुरू कर दिया। कुछ अफसर ऐसे भी थे जो भाजपा नेताओं की पसंद हैं जो निर्वाचित विधायकों के धुर विरोधी हैं। ऐसे में विधायक क्षेत्र से हटाने की सिफारिश न करे इसके लिए परेशान होना पड़ रहा है। कुछेक ने तो उन वरिष्ठ भाजपा नेताओं का दामन थाम लिया जो प्रदेश में दखलअंदाजी रखते हैं।