मोहन सरकार में ‘नेक्स्ट टू सीएम’ कोई मंत्री नहीं…

राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’



विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को बंपर बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री पद के लगभग आधा दर्जन दावेदार थे। कई केंद्रीय राजनीति से आकर विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद से लड़े थे। डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी यह तमन्ना धरी रह गई। मंत्री बनने के बाद मनचाहे विभाग भी नहीं मिले। ये वरिष्ठ मंत्री संभागीय मुख्यालय के जिलों का प्रभारी बनना चाहते थे, यह अरमान भी पूरा नहीं हो सका। एक के बाद एक झटका खाने के बाद ये मंत्री काम की लय नहीं बना पाए हैं। इससे इनकी परफारमेंस पर असर पड़ा है। इनमें से कुछ मुख्यमंत्री के आगे-पीछे रहते हैं लेकिन ‘कोई नेक्स्ट टू सीएमÓ का स्थान नहीं बना सका। किसी भी सरकार में मुख्यमंत्री के बाद दो, तीन और चार नंबर की श्रेणी वाले मंत्री होते हैं, लेकिन मोहन सरकार में यह उपमा किसी को नहीं मिली। मुख्यमंत्री डॉ.यादव जमकर दौरे और काम कर रहे हैं। उनकी कोशिश सरकार की छवि चमकाने की है लेकिन अपनी टीम के वरिष्ठ मंत्रियों का उन्हें अपेक्षा के अनुरूप सहयोग नहीं मिल रहा है। खास बात यह है कि वरिष्ठों की तुलना में पहली बार बने नए मंत्री ज्यादा परिश्रम करते दिख रहे हैं। वे सक्रिय हैं और आम लोगों से मुलाकातें भी कर रहे हैं। इसके विपरीत काम कराना तो दूर, लोगों का वरिष्ठ मंत्रियों से मिल पाना ही किसी जंग जीतने से कम नहीं।


‘जेवी’ से नहीं थी ‘डीएनए’ में उलझने की उम्मीद…
प्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह एवं उनके बेटे जयवर्धन सिंह को एक दूसरे से विपरीत मिजाज का नेता माना जाता है। दिग्विजय अपने तीखे बयानों के कारण विवाद और चर्चा में रहते हैं, जबकि जयवर्धन विवाद रहित शालीन राजनीति के लिए जाने जाते हैं। लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ वे जिस तरह ‘डीएनए’ की लड़ाई में उलझे, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। हालांकि विवाद की शुरुआत सिंधिया की तरफ से हुई थी। जन्माष्टमी के अवसर पर एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के ‘डीएनए’ में ही खोट है। इसीलिए यह पार्टी और इसके नेता जनविरोधी हैं। सिंधिया को जवाब दिग्विजय के स्थान पर जयवर्धन ने दिया। सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य के पिता स्व माधव राव सिंधिया कांग्रेस में थे तो क्या उनके ‘डीएनए’ में भी खोट था? जयवर्धन से ‘डीएनए’ के मामले में माधवराव सिंधिया तक को घसीटने की उम्मीद नहीं थी। विवाद बढ़ा तो सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया भी मैदान में कूदे। उन्होंने कहा कि जयवर्धन के चाचा लक्ष्मण सिंह भाजपा और कांग्रेस में आते-जाते रहे हैं, तो इनके ‘डीएनए’ को क्या कहा जाए? सिसोदिया ने यहां तक कह दिया कि जयवर्धन को मानसिक इलाज कराने की जरूरत है। राजा और महाराज के बीच जो मर्यादा बनी थी, इस विवाद के बाद वह टूट गई।


‘बीरबल की खिचड़ी’ हो गई पटवारी की टीम…
प्रारंभ में लगा था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी चूंकि राहुल गांधी कैम्प से हैं, इसलिए उन्हें काम में फ्री हैंड मिलेगा। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय का वे जिस तरह रेनोवेशन करा रहे हैं, उसे देखकर भी ऐसे ही संकेत थे। लेकिन उनकी प्रदेश कार्यकारिणी ‘बीरबल की खिचड़ी’ की तरह पकने का नाम नहीं ले रही है, उससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह कई बार कह चुके हैं कि हफ्ते-दो हफ्ते में नई कार्यकारिणी घोषित कर दी जाएगी, लेकिन  उनकी घोषणाएं सिर्फ थोथी साबित हुईं। प्रदेश कांग्रेस की ओर से  प्रस्तावित टीम की सूची हाईकमान के पास भेजी जा चुकी है लेकिन वहां से ही हरी झंडी नहीं मिल सकी। इसका मतलब यह निकाला जाने लगा है कि केंद्रीय नेतृत्व की नजर में जीतू के नंबर घट रहे हैं। वजह जो भी हो, लेकिन लगभग 7 माह बाद भी कार्यकारिणी न गठित होने के कारण जीतू की साख पर असर पड़ा है। टीम के अभाव में वे पूरी ताकत से काम भी नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं कि जीतू की सक्रियता में कोई कमी है। वे लगातार आंदोलन कर रहे हैं। अब उन्होंने प्रदेश भर में ‘किसान न्याय यात्रा’ निकालने का ऐलान किया है। इसके तहत प्रदेश भर में ट्रैक्टर रैलियां निकाल कर कलेक्टर कार्यालयों का घेराव किया जाएगा। फिर भी राहुल गांधी से उनके संबंधों को लेकर सवाल उठने लगे हैं।


कांग्रेस को चुनौती देने पर उतर आए लक्ष्मण….!
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह अपनी ही पार्टी कांग्रेस और उसके नेताओं पर लंबे समय से हमलावर हैं। उनके तरकश से निकलने वाले तीर पार्टी को लगातार घायल कर रहे हैं। कार्रवाई तो दूर कांग्रेस नेतृत्व उन्हें नोटिस जारी करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। उनके तीरों से पार्टी नेता राहुल गांधी भी नहीं बचे। कराटे करते एक वीडियों के साथ जब खिलाड़ियों का भरोसा जीतने के उद्देश्य से उन्होंने नई यात्रा पर निकलने की घोषणा की, तब भी लक्ष्मण ने उन पर तीखा तंज कसा था। उन्होंने लिखा था कि ‘राहुल की इस यात्रा से चुनाव में अच्छा मार्गदर्शन मिलेगा।’ अपने भाई दिग्विजय को वे कई बार घेर चुके हैं। प्रदेश भ्रमण का ऐलान कर अब वे कांग्रेस को चुनौती देने पर उतर आए हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा है कि ‘कांग्रेस को दिल्ली में बैठे नेता चला रहे हैं  और हम लगातार असफल हो रहे हैं। कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की सुनी ही नहीं जाती है। वे वर्षों पुराने 20-25 चेहरे ही बंद कमरे में बैठक कर सारे फैसले लेते हैं। एक पर्यवेक्षक बाहर से आता है और वह ही सब कुछ तय कर देता है। कांग्रेस का किसान आंदोलन दिग्विजय के क्षेत्र सहित सभी जगह फ्लॉप साबित हुआ है। आंदोलन से कुछ होने वाला नहीं है। सैम पैत्रोदा कांग्रेस के सबड़े बड़े दुश्मन हैं। मैं प्रदेश भर में भ्रमण करूंगा, जिसको आना हो आए। यह पार्टी को सीधी चुनौती नहीं तो क्या है?


कमलनाथ का नहीं हुआ अब भी प्रदेश से मोह भंग…
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की राजनीति मेें अगली भूमिका को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं। कमलनाथ की सोनिया गांधी से भी मुलाकात हुई है। वे विधायक हैं लेकिन विधानसभा की कार्रवाई में उनकी रुचि दिखाई नहीं पड़ती। इसलिए चर्चा उनके केंद्रीय राजनीति में ही सक्रिय होने की है। मजेदार बात यह है कि वे केंद्र में जवाबदारी तो चाहते हैं लेकिन मध्य प्रदेश से भी उनका मोह भंग नहीं हुआ है। वे भोपाल आते हैं और अपने समर्थकों से मिल कर रणनीति बनाते हैं। इससे प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी खेमे की नींद उड़ जाती है। ताजा दिल्ली दौरे के बाद उनके दायित्व को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। पहला यह कि उन्हें कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाया जा सकता है। दूसरा, पार्टी का महामंत्री बनाकर हरियाणा अथवा महाराष्ट्र का चुनाव प्रभारी बनाया जा सकता है। हरियाणा चुनाव चूंकि चल रहे हैं, इसलिए महाराष्ट्र की जवाबदारी दिए जाने की ज्यादा संभावना है। तीसरा, कमलनाथ की वरिष्ठता और अनुभव को देखते हुए उन्हें गठबंधन को लेकर अन्य दलों से बातचीत का काम सौंपा जा सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले उनके भाजपा में जाने को लेकर चले एपीसोड से हाईकमान तक उनकी धमक कम हुई है। बदली परिस्थिति में उनकी नई भूमिका पर सबकी नजर है।

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