अनोखा तीर हरदा:- हरदा की पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट के बाद इससे जुड़ी घटनाओं की परतें भले ही खुलती जा रही हो, पर जिनकी मौत हुई है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। पिछले कई वर्षों का इतिहास पलट कर देख लीजिए। जब भी इस तरह के हादसे होते हैं, सरकार जांच कमेटी बनाती है, मुख्यमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी और जनप्रतिनिधि घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़ते हैं। नेताओं और अफसरों के बयान, पक्ष-विपक्ष के आरोप, मुआवजे की घोषणा, घायलों को राहत के इंतजाम, दो-चार कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस, एक-दो अधिकारियों का तबादला तो कुछ निलंबन, बस…!! इसके बाद कुछ नहीं होता है… न दोषियों को सजा मिलती है… न ही ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रुकती है।
शांति का टापू कहे जाने मध्य प्रदेश में ऐसा हादसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले 10 साल में पटाखा फैक्ट्रियों में 14 विस्फोट हो चुके हैं। इनमें करीब 180 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। 12 सितंबर 2015 को झाबुआ जिले के पेटलावद में विस्फोट के कारण करीब 80 लोगों की जान चली गई थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ितों के बीच घटनास्थल पर बैठकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थी, पर इस मामले में जो जांच रिपोर्ट सामने आना थी, वह हादसे के नौ साल बाद भी सार्वजनिक नहीं हो पाई है।
इसके बाद 19 अप्रैल, 2017 को इंदौर के रानीपुरा में पटाखा दुकानों में आग लगने से सात लोग मारे गए थे। इसके बाद प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए थे पर ऐसे हादसों पर लगाम नहीं लग पाई। मुरैना में अक्टूबर, 2022 में पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई थी तो 31 अक्टूबर, 2023 को दमोह की फटाका फैक्ट्री में विस्फोट से छह लोग मारे गए थे।
देश या प्रदेश के अलग-अलग शहरों में पटाखा फैक्ट्री में श्रमिकों की मौत के ऐसे समाचार समय-समय पर आते रहते हैं। शासन की ओर से ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए नियम-कायदे लगातार बनते रहते हैं, पर हादसे रुकते नहीं हैं। हरदा की पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट को भी गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने मंत्रालय में सभी कलेक्टरों को उनके जिले में संचालित पटाखा फैक्ट्री के नियमानुसार संचालन और अन्य शर्तों के पालन के अनुसार जांच कर रिपोर्ट तलब की है।

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने हरदा के बैरागढ़ में पटाखा फैक्ट्री विस्फोट स्थल का निरीक्षण किया। फोटो -जनसंपर्क
सवाल उठ रहा है कि क्या जांच कर रिपोर्ट तलब करने से आग लगने से होने वाले हादसे रुकेंगे। बड़ा सवाल तो यही है कि जब पटाखा फैक्ट्री बनाने का लाइसेंस दिया जाता है, तब खामियों और लापरवाहियों की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जाता। लाइसेंस देने के बाद जब फैक्ट्री का संचालन शुरू हो जाता है तो उस पर निगरानी क्यों नहीं की जाती है। हरदा की पटाखा फैक्ट्री में जो भीषण हादसा हुआ है, वह कुछ खामियों की वजह से हुआ है। इन लापरवाहियों में पटाखा फैक्ट्री में क्षमता से अधिक मात्रा में बारुद रखना भी एक बड़ी वजह थी।
इसके अलावा फैक्ट्री में आग से बचाव की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस पटाखा फैक्ट्री के पास ही आवासीय कालोनी थी। इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान भी बने थे। जो मजदूर यहां काम करने आते थे, उनके पास कोई सुरक्षा किट नहीं थी। मजदूर जो कपड़ा पहनकर आते थे, उसी को पहन कर पटाखा फैक्ट्री में काम करते थे। सुरक्षा की दृष्टि से यहां पर वाटर टैंक होना था, लेकिन उसकी भी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इतनी खामियों के बाद भी यह फैक्ट्री कई सालों से चल रही थी। यहां कोई अधिकारी जांच करने आता था तो उसे ये खामियां नजर क्यों नहीं आती थी।
देश में अभी भी कई गांव बारूद के ढेर पर
दरअसल पटाखा व्यवसाय की अंधी कमाई और नियम-कानून का बेहद लचर क्रियान्वयन बारूद की इन फैक्ट्रियों में चिंगारी का काम करता है। नतीजा इस तरह के हादसों के रूप में सामने आता है। देश में आज भी कई ऐसे गांव और शहर हैं, जहां बारूद कभी भी धमाके में बदल सकती है। पटाखा फैक्ट्री के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है। पटाखा फैक्ट्री के आसपास काफी बड़ा भूभाग करीब पांच एकड़ खाली रखना होता है।
भवन निर्माण में भी कई नियमों का पालन जरूरी है। एक से दूसरे कमरे और इस तरह हर कमरे से बाहर जाने के लिए खुले रास्ते साथ ही कमरों के बीच दीवारों का विशेष निर्माण आवश्यक है। विस्फोटक के भंडारण के भी नियम है। इसे हमारी व्यवस्था की खामी कहे या मजबूरी, किसी भी पटाखा फैक्ट्री में इन नियमों का पालन नजर नहीं आता है। फैक्ट्री मालिकों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की मिलीभगत से यह अवैध कारोबार वर्षों से फल-फूल रहा है।
इस तरह की घटनाओं के बाद कड़ी कार्रवाई की बात तो खूब होती है। सारी खानापूरी की जाती है, पर कुछ दिनों बाद सब इरादे कहीं गुम हो जाते हैं। लोग भी ऐसी घटनाओं को धीरे-धीरे भूलने लगते हैं। सरकारी दफ्तरों से लेकर राजनीति के गलियारों तक सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य होने लगता है। सरकार और प्रशासन में जिस मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है, वह फिलहाल नजर नहीं आ रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए।
सरकारी अधिकारी अपने वातानुकूलित कक्षों से बाहर निकलकर यदि समय-समय पर ऐसी फैक्ट्रियों, कारखानों, अवैध कारोबारों, संस्थाओं को निरीक्षण करें तो हादसों पर जरूर रोक लगेगी। अब समय आ गया है जब अवैध पटाखा फैक्ट्रियों के कारोबार पर सरकार को पूरी तरह से रोक लगानी होगा। ऐसी सख्त कार्रवाई की जरूरत है कि अब कोई दूसरी घटना सरकारी लापरवाही के चलते घटित न हो पाए।
मध्य प्रदेश में फायर एक्ट लागू नहीं
प्रदेश में जब भी आग लगने से बड़े हादसे होते हैं तब-तब फायर एक्ट लागू करने की चर्चा तेज हो जाती है। विडंबना यह है कि वर्ष 2020 में बना फायर एक्ट ड्राफ्ट अब तक लागू नहीं हो पाया है। सतपुड़ा भवन में लगी आग के बाद सरकार द्वारा गठित कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जांच कमेटी द्वारा सौंपी गई 287 पन्नों की रिपोर्ट में सरकार को कई सुझाव भी दिए थे। कमेटी ने प्रदेश में फायर एक्ट लागू किए जाने और फायर एंड सर्विसेज के लिए अलग से विभाग बनाए जाने का सुझाव सरकार को दिया था।
\साथ ही एसडीईआरएफ की इकाइयां शुरू किए जाने और उन्हें आधुनिक मशीनें देकर बहुमंजिला भवनों की अग्निशमन की ट्रेनिंग दिलाए जाने का सुझाव था। उस पर भी अब तक अमल नहीं हो पाया है। हरदा हादसे के बाद फिर माडल फायर मेंटेनेंस एंड इमरजेंसी सर्विस एक्ट की जरूरत पर चर्चा होने लगी है। स्थिति यह है कि देश के कई राज्य कुछ संशोधनों के साथ इसे लागू कर चुके हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में यह तीन साल से अधिक समय से सरकार के पास अटका हुआ है।
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