देश ही नहीं शायद दुनिया में मध्य प्रदेश ऐसा इकलौता राज्य जहां किसानों को कृषि कार्य के लिए 0% ब्याज पर अल्पकालीन ऋण दिया जाता है। बेशक इसका पूरा श्रेय मध्य प्रदेश के किसान हितेषी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है। सर्वाधिक कृषि उत्पादों का समर्थन मूल्य पर उपार्जन भी मध्यप्रदेश करता है। लेकिन इसी मध्यप्रदेश में एक ऐसा क्षेत्र भी है जो कृषि उत्पाद की दृष्टि से तो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के मानचित्र पर अपनी छाप कायम किए हुए हैं, परंतु सहकारिता के माध्यम से मुख्यमंत्री की कृषक हितेषी योजनाओं को सर्वाधिक पलीता भी इसी क्षेत्र में लगता है। जी हां, मैं प्रदेश के नर्मदापुरम एवं हरदा जिले की बात कर रहा हूं, जहां किसानों को ना तो 0% ब्याज दर पर अल्पकालीन कृषि ऋण मिल पाता है और ना ही सहकारी सोसायटियों के माध्यम से उधारी में खाद बीज मिल पाते हैं। हालात तो यह है कि समर्थन मूल्य पर बेचे जाने वाली फसलों के दाम भी किसानों को समय पर नहीं मिल पाते। इन जिलों में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और उसकी सहायक समितियां पूरी तरह डूब चुकी है और इन्हें कंगाल बनाने वाले अधिकारी को ही मध्यप्रदेश शासन द्वारा लगातार उपकृत करते हुए बैंक के खजाने की चाबी सौप रखी गई है। निरंतर करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी करार दिए जाने के बावजूद यह अधिकारी अफसर नेताओं को सोने के सिक्कों से तोलकर अपने पद पर बने रहते हैं। आखिर एक भ्रष्ट अधिकारी पर पूरी सरकार क्यों मेहरबान है, यह यक्ष प्रश्न वर्षों से बना हुआ है।
दैनिक अनोखा तीर, हरदा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के किसानों के लिए 0% ब्याज दर पर अल्पकालीन कृषि ऋण की सौगात दे रखीं है। पूरे मध्यप्रदेश के किसानों के लिए यह बहुत ही अच्छी योजना हैं, लेकिन नर्मदापुरम ओर हरदा जिले के लिए यह झूठी बात है। प्रदेश के किसान सहकारी समितियों से रबी और खरीफ के सीजन में एक लाख रुपए तक का खाद बीज उधारी में ले सकते हैं तथा फसल आने पर एक लाख के नब्बे हजार रूपए जमा करा कर ऋण मुक्त हो सकतें हैं। यह योजना भी नर्मदापुरम और हरदा जिले के लिए झूठी बात है। प्रदेश के किसानों को अपने खून पसीने की कमाई गेहूं चना मूंग धान आदि उपज व्यापारियों को ओने पौने दामों पर नहीं बेचना पड़े इसके लिए सरकार समर्थन मूल्य पर इसका उपार्जन करती है। खरीदी करने के 1 सप्ताह के भीतर ही किसानों को उनके खाते में भुगतान भी कर दिया जाता है। लेकिन यह भुगतान नर्मदा पुरम वह हरदा जिले के किसानों को 1 सप्ताह या 2 सप्ताह में नहीं बल्कि 6 महीने और साल भर में भी प्राप्त हो जाए तो वह लक्की किसान कहलाएगा। जी हां, यह बात मैं हवा हवाई या सरकार को बदनाम करने के लिए मनगढ़ंत तौर पर नहीं कह रहा हूं, बल्कि स्वयं नर्मदा पुरमसंभाग आयुक्त ने जिला सहकारी केंद्रीय बैंक नर्मदा पुरम हरदा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आरके दुबे को बीते दिनों निलंबित करने दौरान जारी आरोप पत्र में स्वयं लिखीं है। उन्होंने धान खरीदी के वर्ष 2021-22 के 28 अंतिम देयक प्रस्तुत नहीं करने तथा गेहूं चना खरीदी के 132 करोड़ के देयक प्रस्तुत नहीं करने का उल्लेख किया है। बैंक ने विपणन संघ का भी 67 करोड़ का पिछला भुगतान नहीं किया है इसलिए इसे खाद बीज भी नहीं दिया जाता। यही कारण है कि यहां के किसानों को 10 प्रतिशत छूट पर खाद, बीज व कीटनाशक दवाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अकेले हरदा जिले में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर ( नेफ्ट) का 10 करोड़ बकाया है। बैंक की किसी भी शाखा से उपभोक्ता अपने खाते में जमा राशि एक मुश्त 25-50 हजार रूपए भी नहीं निकाल सकता है। क्योंकि इन शाखाओं में नगद फंड ही नहीं होता है। हालात यह हैं कि सरकार ने चाहें समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी शुरू कर दी है लेकिन यहां बैंक और उसकी समितियों के पास खरीदी के लिए पैसा ही नहीं है। कहने का आशय यह कि नर्मदा पुरम और हरदा जिले में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक तथा उसकी सभी समितियां करोड़ों रुपए की समर्थन मूल्य खरीदी में मिलने वाले लाभांश के बावजूद कंगाल हो चुकी है। हैरत की बात तो यह है कि जिस भ्रष्ट अधिकारी के कार्यकाल में यह बैंक कंगाल हुई है उस अधिकारी को सरकार के नुमाइंदों का हमेशा ही भरपूर संरक्षण मिलता रहा है। प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री बदलते गए, विधानसभा में सत्ता पक्ष के विधायकों के सवालों पर सदन में भ्रष्ट अधिकारी आरके दुबे को हटाए जाने के आश्वासन दिए जाते रहे लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। हाल ही में 18 जुलाई को नर्मदा पुरम संभाग आयुक्त द्वारा कलेक्टर के आदेशों की अवहेलना तथा आत्मनिर्भर भारत अभियान से लेकर 8 बिंदुओं के आरोपों के साथ श्री दुबे को निलंबित किया गया था। निलंबन आदेश जारी होने की बाद लंबी जद्दोजहद पश्चात वह अपने कार्य से मुक्त होकर निलंबन अवधि दौरान दिए गए ग्वालियर मुख्यालय के लिए रवाना हुए। अभी 15 दिन भी ठीक से व्यतीत नहीं हुए थे कि उन्होंने पूर्व की भांति जी अधिकारियों को गांधीजी के समक्ष नतमस्तक कराते हुए अपनी बहाली आदेश जारी करा लिए। आज पूरा देश गांधी जी को शायद इसीलिए प्रणाम करता है कि जिन के समक्ष ब्रिटिश सेना नतमस्तक हो गई थी तो भारतीय अधिकारियों की विसात ही क्या है।
मंत्री संतरी सब है दुबे के मुरीद
अक्सर सुनते थे कि पद में बहुत पावर होती है। लेकिन साहब हमने तो देखा है कि पैसे में पावर होता है, पद भी उसके सामने हाथ फैलाकर खड़ा होता है। इसका जीवंत उदाहरण है जिला सहकारी केंद्रीय बैंक नर्मदा पुरम हरदा के कार्यपालन अधिकारी आरके दुबे जिनके सामने अफसर नेता और मंत्री पानी भरते नजर आते हैं। हमने दुबे को दुबे जी होते देखा है। किसान कर्ज माफी में 26 करोड़ के प्रमाणित हो चुके घोटाले में दोषी पाए जाने के बावजूद जांच अधिकारी और जांच कराने वाले अफसर, मंत्री यहां तक की राजपाल भी बदल गए, लेकिन नहीं बदले तो अपने पद से दोषी माने गए अधिकारी आरके दुबे। रीवा पदस्थापना दौरान 36 करोड़ के घोटाले में न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने के बावजूद अगर किसी अधिकारी पर कार्यवाही नहीं हो पाई तो वह है आरके दुबे। बैंक की हरदा शाखा से पौने तीन करोड़ों के नगद गबन मामले में जेल की हवा खा कर वापस अपने पद पर काबिज होने वाले अधिकारी है आरके दुबे। भ्रष्टाचार के मामले में अपेक्स बैंक द्वारा सेवा से बर्खास्त करने के बावजूद वापस बैंक में कैडर अधिकारी बनाए जाने वाले अधिकारी हैं आरके दुबे। जिन सत्ताधारी विधायक द्वारा अपनी ही सरकार के सहकारिता मंत्री से आरके दुबे के भ्रष्टाचार पर सदन में सवाल जवाब किया गया था आज उनके मंत्री बनने उपरांत कोई चेहरा अधिकारी है तो वह आरके दुबे। एक भ्रष्ट अधिकारी पर सरकार के नुमाइंदों द्वारा जितनी मेहरबानी की जा रही है उसे देखते हुए तो यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि आने वाले वर्षों में सर्वश्रेष्ठ बैंक अधिकारी के रूप में अगर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए किसी सहकारिता अधिकारी का नाम प्रस्तावित किया गया तो वह भी होगा आरके दुबे।
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