गेहूं की फसल में जड़ महु की शिकायत, किसान कर रहा दवाओं का छिडक़ाव,कृषि अमला सोयाबीन तुलाई में लगा
भैरूंदा। क्षेत्र में पिछले दो दिनों से मौसम का परिवर्तन रूप दिखाई दे रहा है और जिसके चलते आसमान पर बादल छाये हुए हैं। सोमवार को पूरे दिन सूर्य देव के दर्शन भी नही हो सके और सूरज की किरण न निकलने से चने व मक्का फसल में कीट की शिकायत शुरु हो चुकी हैं। कीट का प्रकोप चने से कई अधिक मक्का फसल में देखा जा सकता हैं। काले व हरे रंग की इल्लियां पौधों के पत्तों को चट कर रही हैं। वहीं गेहूं की फसल में जड़ महु की शिकायत भी सामने आने लगी हैं। फसलों में कीट का प्रकोप बढऩे से अब किसान बाजार आकर दवा विक्रेताओं के यहां इससे निजात के तरीके ढूंढ रहा है। किसानों को ऐसी स्थिति में क्या निर्णय लेना चाहिए व किन दवाओं का छिडक़ाव करना चाहिए यह जानकारी उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। क्योंकि सभी ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों की ड्यूटी इस समय सोयाबीन खरीदी केंद्र पर लगी हुई हैं। नोडल अधिकारी के रूप में नियुक्त रहकर कृषि अमला वेयर हाऊसों में मानकों के आधार पर सोयाबीन की तुलाई व केंद्रों की मॉनीटरिंग में लगा हुआ हैं। जिससे किसान दवा विक्रेताओं द्वारा सुझाएं गए उपाय के आधार पर फसलों में दवाओं का छिडक़ाव कर रहा है। ज्ञातव्य हंैं कि इस वर्ष अक्टूबर माह तक बारिश का दौर सतत् जारी रहने से किसान भाई रबी फसल की बुआई में एक माह लेट हो गए। 15 दिसम्बर तक क्षेत्र में बुआई का क्रम लगातार जारी रहा। बारिश के कारण इस वर्ष नवम्बर माह तक खेतों में पर्याप्त नमी बनी रही। जिससे किसानों द्वारा फसल की बुआई खेतों में नमी देखकर कर दी। अब ऐसे खेतों में बोई गई फसल में कीट का प्रकोप देखा जा रहा हैं। चने के पौधों में जहां हरे रंग की इल्लियों का अटैक शुरु हो चुका हैं तो वहीं मक्का फसल में भी काले रंग की इल्लियां पत्तों को चट कर रही हैं। देरी से हुई गेहूं की बुआई का असर भी अब फसलों में साफ तौर पर देखा जा सकता हैं। गेहूं की जड़ में अब जड़ महू रोग लग रहा है, जिससे गेहूं का पौधों सूखते जा रहा हैं। हालांकि यह शिकायत कुछ ही क्षेत्रों में शुरु हुई हैं। लेकिन इससे बचाव के लिए अब तक कृषि विभाग द्वारा कोई भी एडवायजरी जारी नहीं की हैं।
रोकथाम नहीं तो उत्पादन पर पड़ेगा असर
गेहूं के पौधे पीले पडक़र सूख रहे हैं। इस कारण उत्पादन प्रभावित होने की संभावना से किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। तहसील क्षेत्र में गेहूं की फसल 58 हजार हैक्टेरयर, मक्का 2000, चना 16 हजार हैक्टेयर व अन्य रकबे में मटर, मसूर, सरसों की बुआई की गई हैं। लगातार मौसम के खराब बने होने से इस वर्ष गेहूं के रकबे में बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन अब फसल में जड़ महू रोग लगना शुरु हो चुका हैं। कुछ गांवो में तो फसल लगभग डेढ़ माह से अधिक समय की हो गई हैं। लाडक़ुई, भादाकुई, तिलाडिय़ा, सेमलपानी, श्यामपुर, मगरिया, गौरखपुर, वासुदेव में कुछ – कुछ क्षेत्रों में गेहूं के पौधों में जड़ माहू (रस चूसक) कीट की शिकायत मिली। इससे पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगी हैं। कृषक जितेंद्र सिंह की 4 एकड़, बलवंत सिंह की 3 एकड़ भूमि में कुछ स्थानों पर यह बीमारी देखने को मिली। जबकि कृषक भागीरथ मीणा ने बताया कि जड़ माहू कीट धीरे-धीरे खेतों में फैल रहा है। जिससे उत्पादन प्रभावित होने की संभावना हैं। इसकी रोकथाम के लिए अब तक कृषि विभाग द्वारा एडवायजरी जारी नहीं की है।
मक्का फसल की पत्तियां खा रही इल्लियां
क्षेत्र के गांव जोगला, बीजला, नेहरूगांव, नाहरखेड़ा, रिठवाड़, पाचौर, नंदगांव में सर्वाधिक मक्का की फसल की बुआई की गई हैं। फसल लगभग एक माह से अधिक की अवधि पूरी कर चुकी हैं और किसानों द्वारा फसलों में खरपतवार नाशक सहित दो बार कीटनाशक दवाओं का छिडक़ाव भी कर चुके हैं। बावजूद इसके इल्लियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। शनिवार से एक बार फिर मौसम बदलने व बादल छाये रहने से मक्का फसल में इल्लियां बढऩे लगी हैं। चने में भी इसका असर साफ तौर पर देखा जा सकता है।
क्या है जड़ माहू रोग
जड़ माहू कीट हरे रंग की जूं की तरह होता है। यह फसलों के भूमिगत तने एवं जड़ो का रस चूसता है। जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचाता है। प्रभावित पत्तियां सूखने लगती हैं। वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी व्हीएस राज ने बताया कि फिलहाल जड़ माहू रोग का प्रकोप कुछ ही गांवो में देखने को मिला है। हालांकि मौसम परिवर्तन, खेतो में नमी, समय पर सिंचाई नहीं करने के अलावा देरी से बोई गई फसलों में इस कीट का प्रकोप देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त असंतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करने से भी यह देखा जाता हैं। इसके लिए किसान क्लोरीपायरिफास दवा का छिडक़ाव करे। इससे फसलों में सुधार होगा। वहीं जिन पौधो में जड़ माहू की शिकायत है उन्हें उखाडक़र फेंक दे। जिससे कि दूसरे पौधों में यह बीमारी ना फैले।
कृषि अधिकारी करा रहे सोयाबीन की खरीदी
सोयाबीन खरीदी केंद्रों पर इस बार बारदानें छोटे आने की शिकायत करते हुए वेयर हाऊस संचालकों द्वारा निर्धारित मानकों पर बोरियों में सोयाबीन नहीं भरा। सोयाबीन की कट्टियों में 45 से 47 किलो वजन जांच के दौरान पाये जाने से संचालकों पर कार्रवाई की तलवार लटकी हुई हैं। ऐसे में अभी केंद्रों पर ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों को नोडल अधिकारियों के रूप में तैनात किया गया हैं,जिससे कि मानकों पर खरीदी हो सके। ऐसे में अब किसानों को फसलों की सुरक्षा के लिए जानकारी देने वाला अमला मौजूद नहीं हैं, जिससे किसान दवा विक्रेताओं के यहां पहुंच रहे हैं और मंहगी दवा खरीदकर फसलों की सुरक्षा कर रहे हैं।
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