आखिर मौत के कारोबारियों पर रहम क्यों?

 प्रहलाद शर्मा, हरदा:-आज हरदा जिले में जिस फटाका फैक्ट्री में हुए भीषण विस्फोट दौरान अनेक लोगों की जाने गई है यह इस फैक्ट्री पर हुआ पहला हादसा नहीं है। इससे पहले भी हरदा के इसी फटाका कारोबारी बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि मौत के कारोबारी के कारोबार से १० लोगों की जानें अलग-अलग घटनाओं में जा चुकी है। आज की घटना ने हरदा ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। जिस समय हरदा में यह मौत का विस्फोट हुआ तब प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रदेश सरकार की केबिनेट बैठक चल रही थी। घटना की सूचना मिलते ही प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री मोहन यादव ने तत्काल अपने मंत्रीमण्डल के सहयोगी मंत्री और अधीनस्थ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को तत्काल हेलीकाप्टर से हरदा पहुंचकर वस्तुस्थिति से अवगत कराने तथा घायलों को समुचित उपचार मुहैया कराने के निर्देश दिए। तत्पश्चात मुख्यमंत्री ने अपने अन्य कार्यक्रम स्थगित करते हुए आपातकालीन बैठक आयोजित कर हरदा के इस भीषण हादसे की समीक्षा करते हुए भोपाल एवं इंदौर में घायलों के उपचार हेतु तत्काल व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने एवं पल-पल की जानकारी से अवगत कराते रहने की बात कही। मुख्यमंत्री की तत्परता से घटना के कुछ ही घंटों के भीतर न केवल हरदा के आसपास के जिलों से अपितु इंदौर और भोपाल से भी एम्बुलेंस, फायर गाड़ी, मेडिकल स्टॉफ, डॉक्टर आदि हरदा पहुंच गए। मुख्यमंत्री द्वारा दिखाई गई इस संवेदनशीलता को क्षेत्र की जनता ने सराहा है। प्रदेश के मुखिया के नाते उनके द्वारा घटना की गंभीरता को देखते हुए उठाए गए कदम निश्चित ही सराहनीय भी थे। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर इस तरह की घटनाएं कब तक होती रहेगी? ऐसे मौत के कारोबारियों को कब तक नजरअंदाज किया जाता रहेगा? आज हरदा की घटना के पश्चात आसपास के कलेक्टरों ने और स्वयं मुख्यमंत्री ने प्रदेश के प्रत्येक जिलों की फटाका फैक्ट्रियों का निरीक्षण कर शासन को प्रतिवेदन भेजने के निर्देश दिए है। क्या ऐसी घटना से पहले जिला प्रशासन के आलाधिकारियों का दायित्व नहीं है कि वह ऐसे कारोबार का समय-समय पर निरीक्षण करें। वहां की वस्तुस्थिति को देखते हुए कार्रवाई और सुरक्षा के उचित उपाय कराए जाए। हरदा की जिस फैक्ट्री में आज दिल को दहला देने वाली घटना हुई है यह उस फैक्ट्री की पहली घटना नहीं है। इससे पहले वर्ष २०१४ में इसी फटाका कारोबारी द्वारा आसपास के लोगों को बारुद देकर फटाका बनवाने के काम दौरान हुए विस्फोट से दो बच्चियों की मौत हुई थी। अभी इन बच्चियों की मौत का दुख कम भी नहीं हुआ था कि अगले ही वर्ष २०१५ में फिर एक ऐसे ही फटाका बनाने वाले परिवार द्वारा बारुद कचरे के ढेर में फेकने के कारण कचरा उठाने वाले नगरपालिका कर्मचारी की मौत हो गई। मौत का यह सिलसिला थमा नहीं था। फिर एक वर्ष पश्चात वर्ष २०१६ में इसी फटाका व्यापारी के गोदाम पर हुए विस्फोट में दो युवकों की दर्दनाक मौत हो गई। वहीं इसकी एक अन्य फैक्ट्री जो हरदा जिले के ही ग्राम पीपलपानी में आज भी चलती है वहां हुए विस्फोट में भी दो लोगों की जान चली गई। १० मई २०२१ को फिर इसी फटाका कारोबारी के उसी गोदाम में विस्फोट हुआ जहां आज हुआ है और दो महिलाओं सहित एक किशोरी की मौत हो गई थी। इतनी मौतों के बावजूद मौत का यह कारोबार आखिर कैसे बदस्तूर चलता रहा? तात्कालीन पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल और जिलाधीश संजय गुप्ता द्वारा इस फैक्ट्री को सील कर दिया गया था। तब इनके विरुद्ध धारा २८६, ३३७, ३०४ ए, ३४ भादवि एवं ३, ४, ५, ६ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा १९०८ के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था। इस मामले में फटाका कारोबारी राजू अग्रवाल को गिरफ्तार भी किया गया था, जिसे १३ मई २०२१ को न्यायालय ने जेल भेजा था। इतने अपराध और इतनी घटनाएं एक ही फटाका कारोबारी के यहां घटित होने और इतनी जाने जाने के बावजूद आखिर प्रशासन ने इनके अपराधों को नजरअंदाज करते हुए पुन: यह कारोबार करने का लायसेंस कैसे दिया? क्या जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने कभी इस बात की तहकीकात की कि जिस फटाका फैक्ट्री पर लगभग चार पांच सौ मजदूर बारूद से फटाका बनाने का कार्य करते है वह सभी मजदूर कुशल कारीगर है? क्या इन सभी मजदूरों का श्रम विभाग में पंजीयन है ? क्या फैक्ट्री पर इन मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम है? क्या जिस स्थान पर यह मजदूर काम कर रहे है वहां विस्फोटक पदाथ अधिनियम के तहत जितनी दूरी पर जितनी संख्या में मजदूरों के काम करने का प्रावधान है उसका पालन किया जा रहा है? क्या यह फटाका फैक्ट्री आवासीय क्षेत्र के आसपास है? क्या इस फैक्ट्री के आसपास से कोई हाईटेंशन विद्युत लाईन निकलती है? ऐसे उन तमाम बातों को नजरअंदाज करते हुए यह कारोबार संचालित करने की अनुमति कैसे दी गई? कल्पना कीजिए आज जो हादसा घटित हुआ है वह आज से १५ दिन पश्चात घटित होता तब क्या होता? चूंकि आज के इस विस्फोट दौरान आग के गोले आसपास कई किलोमीटर तक जाकर गिरे है। अगर १५ दिन पश्चात यह घटना होती तो उस क्षेत्र से लगे हुए खेतों में गेहूं, चने की फसलें सूख चुकी होती और वहां गिरने वाले आग के गोले बारुद के ढेर पर गिरने जैसा कार्य करते। ऐसी स्थिति में प्रशासन की कितनी भी दमकल गाड़ियां लगा दी जाती यह आग जंगल की आग की तरह खेतों खेतों होते हुए कई गांवों को अपनी चपेट में ले लेती। लेकिन आज भी घटित हुई यह घटना कहीं कमतर नहीं है। फिलहाल चाहे मरने वालों का आंकड़ा ११-१२ बताया जा रहा हो, लेकिन यह तो वह लोग है जो वहां से गुजर रहे थे या आसपास कोई अन्य कार्य कर रहे थे। जानकारी के अनुसार इस फैक्ट्री के एक तल पर ही लगभग १५० मजदूर काम कर रहे थे जबकि फैक्ट्री में ऐसी तीन मंजिलों पर फटाके बनाने का काम चल रहा था। बारुद के इस भयानक विस्फोट के बाद इस इमारत का नामोनिशान मिट गया है। पूरी तरह जमींदोज हो चुकी इस इमारत में कितने लोग सुरक्षित बचे होंगे या अपने को बचाकर भाग पाए होंगे इसका अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं है। यह तो तब पता चलेगा जब आसपास के क्षेत्र और शहर के जिन परिवारों के लोग वहां मजदूरी करने जाते थे और वह वापस लौटकर नहीं आए या उनका कोई अता-पता अभी नहीं चला है जब ऐसे लोगों की सूची बनकर तैयार होगी। जब-जब भी ऐसी घटनाएं होती है तो उसका लेकर प्रशासन अपनी सजगता का प्रदर्शन करते नजर आता है। लेकिन कुछ ही दिन पश्चात जनता और प्रशासन तथा इस तरह की घटनाओं पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले सभी समाजसेवी इसे भुला देते है। पेटलावद घटना किसी से छुपी नहीं है। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? कहीं हरदा की यह घटना भी ऐसे ही न भुला दी जाए। चूंकि फटाका या विस्फोटक पदार्थों का उपयोग कर अपनी खुशियों का इजहार करना कोई धार्मिक मान्यता नहीं है। न ही ऐसा करना समाज या जीवन के लिए नितांत आवश्यक है। फिर हम ऐसे मौत के कारोबार को क्यों पनपने देते है। मुख्यमंत्रीजी आपने आज मानवीयता का परिचय दिया और तत्परता दिखाई। ऐसी ही तत्परता इस पूरे घटनाक्रम को लेकर दोषियों के प्रति अवश्य दिखाईएं ताकि फिर कोई हरदा हादसा न हो। आज की इस घटना में असमय मौत के आगोश में समाए उन सभी दिवंगतों के प्रति भावपूर्ण श्रद्धांजलि और घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूूं।

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