अनोखा तीर, हरदा। जमीन की रजिस्ट्री से लेकर नामांतरण तक में आम लोगों को तमाम समस्याएं सामने आने की शिकायत आम है। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा हरदा सहित चार जिले इंदौर, सागर और डिंडोरी में शुरू किए गए पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद अब इसे संपूर्ण प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा।
क्या है पायलट प्रोजेक्ट
जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में भू-संपत्ति और अचल संपत्ति के विक्रय अभिलेख की रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण करने की व्यवस्था लागू की गई थी। इससे आमजन को नामांतरण में होने वाली समस्याएं हल हो गई। यह पायलट प्रोजेक्ट हरदा सहित 4 जिलों में लागू हुआ था। इसके सफल होने के बाद संभवत: यह 1 जुलाई या इसके बाद प्रदेश भर में जहां सायबर तहसीलें तैयार हो चुकी हैं लागू हो जाएगा।
संपदा साफ्टवेयर में प्रावधान किए
जानकारी के अनुसार योजना अंतर्गत पंजीयन विभाग के सम्पदा साफ्यवेयर में इसके प्रावधान भी किए गए हैं। इसके चलते अविवादित कृषि जमीनों की रजिस्ट्रियों के साथ ही स्वत: ही नामांतरण की प्रक्रिया भी पूरी हो जाती है। पिछले 6 माह में ही करीब 10 हजार से ज्यादा कृषि जमीनों के नामांतरण इस प्रक्रिया के तहत आसानी से हो गए और जमीन मालिकों को तहसील कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाना पड़े। भविष्य में सभी तरह के भूखंडों, मकानों, फ्लैटों सहित अन्य सम्पत्तियों के मामले में भी नामांतरण की इस तरह की सुविधा दी जाएगी।
प्रदेश में पहला राज्य बनेगा
यह प्रोजेक्ट लागू होने के बाद मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य बन जाएगा। जहां अविवादित नामांतरण के प्रकरणों का तेजी से निराकरण इन सायबर तहसीलों के माध्यम से होगा, जिसमें क्रेता-विक्रेता को नामांतरण के लिए अलग से तहसील कार्यालय आने की जरूरत पोर्टल को भी नहीं पड़ेगी और जब रजिस्ट्री होगी, उसके साथ ही नामांतरण की प्रक्रिया भी सम्पदा पोर्टल के माध्यम से हो जाएगी। दरअसल इन्दौर, सागर, हरदा और डिण्डौरी में पिछले अक्टूबर माह से सायबर तहसील का यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसकी सफलता के बाद अब प्रदेश के सभी 52 जिलों में इसे लागू किया जाएगा।
संपदा पोर्टल और आरसीएमएस को जोड़ा
इस प्रोजेक्ट में पंजीयन विभाग के सम्पदा पोर्टल साथ राजस्व प्रकरण प्रबंधन सिस्टम यानी आरसीएमएस जोड़ा है, जो कि लैंड रिकार्ड से संबंधित है। अभी तक इससे जो अविवादित कृषि भूमि के आटोमैटिक नामांतरण रजिस्ट्री के बाद हुए हैं, उनके लिए किसी भी क्रेता-विक्रेता को तहसील कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दरअसल इसके लिए रजिस्टर्ड सम्पत्तियों की जियो टैगिंग प्रक्रिया भी की गई, जिसके चलते उन्हें एक यूनिक नंबर मिला, जिसके आधार पर नामांतरण की प्रक्रिया संपन्न हुई।
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