Naag Panchami 2022: What Is The Story Of The Nag Temple, Which Opens For One Day In A Year – Naag Panchami 2022: साल में एक दिन के लिए खुलने वाले नाग मंदिर की क्या है कहानी, क्यों लगती है भक्तों की भीड़

श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान शिव का आभूषण भी माना गया है। भारत में अनेक सर्प मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का जो कि उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। ये मंदिर पूरे वर्षभर में सिर्फ 24 घंटे के लिए नागपंचमी पर ही खोला जाता है। इस बार नागपंचमी 2 अगस्त को पड़ रही है। इस बार भक्तों के दर्शन के लिए प्रशासन ने पैदल पुल बनवाया है। इसके पहले तक अस्थायी सीढ़ियों के सहारे दर्शन कराए जाते थे। 

 

11वीं सदी की मूर्ति

ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। इसके दर्शन के लिए सोमवार रात 12 बजे मंदिर के गेट खोले जाएंगे, कलेक्टर आशीष सिंह पूजा करेंगे फिर भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खोल दिया जाएगा। मंगलवार रात 12 बजे पूजन के बाद फिर एक साल के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे।

 

दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर 

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। नागपंचमी पर अखाड़े की परंपरा अनुसार भगवान नागदेवता की त्रिकाल पूजा होती है। पहली पूजा सोमवार रात 12 बजे होगी, जो महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा करवाई जाएगी। मंगलवार दोपहर 12 बजे दूसरी पूजा होगी, जिसमें शासन का सहयोग रहेगा। सोमवार शाम भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद तीसरी पूजा होगी। इसे मंदिर प्रबंध समिति करवाएगा। 

 

एक ही दिन क्यों खुलता है मंदिर 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक सर्प राज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। 

 

क्यों उमड़ती है भीड़

कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

 

Views Today: 2

Total Views: 28

Leave a Reply

लेटेस्ट न्यूज़

MP Info लेटेस्ट न्यूज़

error: Content is protected !!