-अंचल की आवाज बना अनोखा तीर
-प्रहलाद शर्मा
सुधि पाठकों
आज आपका दैनिक अनोखा तीर अपने 15वें वर्ष का सफर शुरू करने जा रहा है। 5 जून 2011 विश्व पर्यावरण दिवस के दिन ही हरदा से इसका प्रकाशन शुरु हुआ था। वैसे तो अनोखा तीर साप्ताहिक अखबार के रूप में 1995 से 1998 तक भी प्रकाशित होता रहा था। तब भी पाठकों का अटूट प्रेम इस अखबार को मिला था। किसी साप्ताहिक अखबार की उस समय 5 हजार प्रतियां प्रकाशित होना बहुत बड़ी बात थी। गांव गांव में डाक द्वारा पहुंचा करता था। अखबार की विश्वसनीयता तब भी उतनी ही थी आज भी पाठकों का वहीं विश्वास कायम है। लेकिन तब मेरे द्वारा तीखे तेवरों और व्यंग्यात्मक शैली में जो खबरें लिखी जाती थी, नर्मदांचल में उसका एक बड़ा पाठक वर्ग हुआ करता था। उस समय अनोखा तीर को एक राजनीतिक घटनाक्रम के चलते अपने सिद्धांतों से समझौता करने जैसी परिस्थिति निर्मित हो गई थी, चूंकि पाठक मेरे लेखन पर भरपूर भरोसा करते थे, यह समझौता न केवल मेरी अंतरात्मा को मारने या एक पत्रकार को बिकने भर की बात नहीं था अपितु पाठकों के साथ विश्वासघात भी था। ऐसी स्थिति में हमने अखबार का प्रकाशन ही बंद करने का निर्णय ले लिया था। साप्ताहिक अनोखा तीर तब बंद कर दिया गया। 13 वर्षों के लंबे अंतराल पश्चात इसकी प्रकाशन अवधि परिवर्तन कर दैनिक अनोखा तीर के रूप में शुरू किया गया। जब अखबार की शुरुआत हुई थी तब राजधानी भोपाल सहित विभिन्न क्षेत्रों के अखबारी दुनिया से जुड़े मेरे साथियों ने कहा था कि आपने राजधानी के अखबार की अच्छी भली नौकरी छोड़कर यह बहुत गलत कदम उठाया है। हरदा जैसी छोटी सी जगह से दैनिक अखबार का प्रकाशन संभव नहीं है। कुछ लोगों ने कहा था कि अधिक से अधिक तीन महीने, तो किसी ने छ: महीने में बंद होने जैसी बातें भी कहीं थी। वैसे उन लोगों का अनुमान भी वर्तमान परिस्थितियों में दैनिक अखबार वह भी इतने छोटे शहर से चलाने को लेकर गलत नहीं था। आज महंगाई के दौर में जब एक आठ पृष्ठ के अखबार का कोरा कागज ही 3 रुपए का आता है ऐसी स्थिति में छपा हुआ अखबार 2 रुपए में बेचकर भला कोई अखबार कैसे जिंदा रह सकता है। यह केवल विज्ञापनों से ही संभव है जो वर्तमान दौर में अखबारों को जिंदा रखें हुए हैं। आज कड़वा सच यही है कि लिखने और मंचों से कहने में जरुर कहा जाता है कि केवल पाठकों के दम पर अखबार जिंदा है, बेशक पाठकों की बड़ी भूमिका होती है और वह अखबार के प्राण होते हैं, लेकिन इन प्राणों को धधकते रहने के लिए जिस रक्त की आवश्यकता होती है वह विज्ञापन है। इसलिए विज्ञापनदाताओं की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण था कि अधिकांश लोगों ने इसकी उम्र तीन या छ: महीने ही बताई थी, लेकिन हमारे पाठकों और विज्ञापनदाताओं के भरपूर प्रेम और सहयोग का ही प्रतिफल है कि आज दैनिक अनोखा तीर 14 वर्ष का सफर तय कर 15वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। कोरोना काल में जब अधिकांश अखबार छपना बंद हो गये थे, तब भी अनोखा तीर अपनी निरंतरता बनाए पाठकों के हाथों में पहुंच रहा था। इस दौर में राजधानी सहित विभिन्न महानगरों से भारी भरक संसाधनों और सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था के साथ प्रकाशित होने वाले अखबारों ने अपने कर्मचारियों का वेतन आधा कर दिया था तथा मोटी पगार वाले अनेक नामचीन पत्रकारों, संपादकों की छुट्टी कर दी थी। तब भी दैनिक अनोखा तीर द्वारा अपनी टीम को समय पर वेतन देते हुए स्थानीय स्तर पर उन प्रेस कर्मचारियों का सहारा बना जिन्हें दूसरे अखबारों ने नौकरी से निकाल दिया था। चूंकि यह अखबार किसी उद्योगपति का महज एक व्यवसायिक उपकर्म नहीं है अपितु पत्रकारों द्वारा निकाले जाने वाला पाठकों का अखबार है। इसमें कोई नौकरी नहीं करता, बल्कि हर साथी अपने समर्पण भाव से अपनी सेवा देता है। मैं हमारे ऐसे सभी सहयोगी साथियों के प्रति नतमस्तक हूं जो आर्थिक लाभ की चिंता किए बिना अपनी सतत सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। मैं श्री विष्णु कौशिक जी, श्री राजीव खंडेलवाल जी, श्री जयराम शुक्ल जी, श्री प्रकाश भटनागर जी, श्री गणेश पांडे जी, श्री श्रीराम माहेश्वरी जी, श्री प्रदीप मालवीय जी सहित उन सभी वरिष्ठों लेखकों के प्रति भी नतमस्तक हूं जो बगैर किसी आर्थिक आकांक्षा के अपने निरंतर लेखन से अखबार को पठनीय बनाएं रखने में सहयोगी है। हां, यदा-कदा यह बात अवश्य कुछ पाठकों के माध्यम से सामने आती रही हैं कि अखबार में मेरी मूल लेखन शैली या खबरें अथवा व्यंग्यात्मक शैली वाला लेखन पढ़ने को नहीं मिलता है, तो मैं सहज इस आरोप को स्वीकारता हूं कि मेरा मूल लेखन फिर चाहे वह देशज भाषा शैली का हो या व्यंग्यात्मक लगभग छूट गया है। उसका मूल कारण शायद उपर वर्णित अखबार की निरंतरता में विज्ञापन की भूमिका विषय से स्पष्ट हो गया होगा। चूंकि वर्तमान समय में तिखा और खरा-खरा लेखन अथवा स्वच्छ समीक्षात्मक लेखन को अब प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में व्यक्तिगत रूप से लिया जाने लगा है। निरंकुश अफसरशाही और भ्रष्टाचार की वेदी पर चरण दुलारती राजनीति में मेरे जैसे पत्रकार अप्रासंगिक हो गये हंै। और फिर स्वयं को अखबार का प्रकाशन भी निरंतर जारी रखने की चुनौती जो है इसलिए आ बेल मुझे मार वाली कहावत क्यों चरितार्थ करें। खैर अखबार जनसरोकार के मुद्दों, गांव, गरीब और किसानों की आवाज बनकर चलता रहा है और आगे भी इन्हीं प्राथमिकता के साथ अपनी यात्रा जारी रखेगा। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता और वृक्षारोपण कार्य को प्रोत्साहित करने का कार्य हम पहले भी करते रहे हैं और आगे भी जारी रहेगा। अनोखा तीर के 15वें वर्ष में प्रवेश पर पाठकों, विज्ञापनदाताओं, सभी लेखकों, शुभचिंतकों, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए हार्दिक बधाई।
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