गणेश पांडे, भोपाल। वनोपज खरीदी के लिए एमएफपी पार्क द्वारा किए गए टेंडर को लेकर जब सत्तारूढ़ दल के आदिवासी पूर्व विधायक दुलीचंद उरेती ने सवाल खड़े किए तो उसके जवाब में लघु वनोपज संघ के एमडी विभाष ठाकुर ने गंभीरता से लेते हुए टेंडर से क्रय-प्रक्रिया को रोका दिया। अब नए सिरे से टेंडर करने के निर्देश दिए हैं। पूर्व विधायक उरेती की शिकायत है कि लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र बरखेड़ा पठानी द्वारा आयुर्वेदिक दवाईयों के निर्माण में उपयोग होने वाले वनोपज जो कि एमपी के जंगलों में मिलते हैं को आदिवासी वनोपज संग्राहकों, वन समितियों अथवा सहकारी संस्थाओं से न ख़रीद कर व्यापारियों से खरीदी की जा रही है। शायद यही वजह रही कि टेंडर के नियमों में कई शर्ते ऐसी जोड़ी गई है, जो न तो संघ के प्रबंध संचालक से स्वीकृत कराई गई और न ही संचालक मंडल द्वारा अनुमोदित की गई है। दरअसल, लघु वनोपज संघ सहकारी संस्था है और लघुवनोपज पर निर्भर आदिवासी वनोपज संग्राहकों को आजीविका के साधन मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किए। लेकिन ये केंद्र आदिवासी वनोपज संग्राहकों से नाम मात्र की खरीदी करता है। करोड़ो का वनोपज व्यापारियों से टेंडर के माध्यम से क्रय कर रहा है। अभी कुछ वर्षों से धीरे-धीरे टेंडर में गड़बड़ी की जा रही है। टेंडर प्रक्रिया में ऐसी शर्तें लगाई जा रही है जिससे अपने पसंद के व्यापारियों को ही फायदा मिले।
पसंदीदा फर्म को लाभ पहुंचाने जोड़ी शर्ते
सभी से टेंडर भरते समय ही कच्चे माल रॉ मटेरियल की आयुष/ एनयेबील लैब से जांच रिपोर्ट मांगी जा रही है। रिपोर्ट जमा नहीं करने पर टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जा रहा है। जबकि जिन्हें रॉ मटेरियल का टेंडर अलॉट हो, उनसे ही जाँच रिपोर्ट सप्लाई की समय लेनी चाहिये और उसका परीक्षण भी किया जाना चाहिए। विगत वित्तीय वर्ष में टेंडर भरने के लिए जो वित्तीय अहर्ता 35 लाख रुपए की थी उसे बढ़ाकर सीधे एक करोड़ कर दिया गया। जिससे कई छोटे व्यापारी बाहर हो जाएंगे। अंदर खाने से यह खबर है कि कुछ विशेष व्यापारियों को लाभ देने के लिए बिना लघु वनोपज संघ से अनुमति लिए कई शर्तें जोड़ कर भ्रष्टाचार करने की जुगत बैठाई गई है।
वन समितियों से खरीदी करने के निर्देश हवा में
और तो और विगत कई वर्षों से संघ के एमडी विभाष ठाकुर रॉ मैटेरियल के लिए आदिवासी वनोपज संग्राहकों वन समितियों से खरीदी करने के निर्देश दे रहे है फिर भी प्रसंस्करण केंद्र के संचालक द्वारा कोई ना कोई बहाना बनाकर टेंडर से ही खरीदी कर रहे है। आदिवासी पूर्व विधायक की शिकायत पर टेंडर तो निरस्त कर दिया गया है लेकिन टेंडर से व्यापारियों को फायदा पहुंचाने एवं पूर्व में की गई खरीदियों और नियम विरुद्ध करोड़ो के भुगतान की जांच कब होगी और कौन कराएगा। अभी हाल ही में महिला बाल विकास विभाग ने भी किसी खास व्यक्ति को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसी शर्तें टेंडर में डाली गई थी जिसके बाद हाईकोर्ट ने टेंडर निरस्त कर विभाग पर दस लाख का जुर्माना लगाया है।
व्यापारिक फर्म के लिए जोड़ते हैं शर्तें
आदिवासियों के बीच काम करने वाले पूर्व विधायक उरेती ने अपने पत्र में उल्लेख किया है किअभी वर्तमान टेंडर मे ऐसी शर्ते लगाई है, जिससे केवल व्यपारिक फर्मे ही टेन्डर डाल सके। निविदा में 1 करोड़ टर्नओवर एवं लैब रिर्पोट की ऐसे नियम जोड़ दिए गए हैं जिससे न तो वनों पर निर्भर वन समितियां और न ही वनोपज के छोटे संग्राहक एवं व्यापारी खरीदी प्रक्रिया में शामिल हो सकें। निविदाओं के माध्यम से उन वनोपज को भी क्रय किया जा रहा है जो कि प्रदेश के वनों में उपलब्ध हैं। आवंला, हर्रा, बहेड़ा, गिलोय, शहद गुड़मार, अर्जुन छाल, महुआ, नागरमोथा, धवई फूल, एरंडमूल, कंरजबीज, निरगुंडी, बला पंचाग, बबूल गोंद, बराहीकंद, सतावर, अष्वगंधा, चित्रक, बच इत्यादि वनोपज महंगे दरों पर व्यापारियों से क्रय किए जा रहे हैं।
अब एल-1 से भी वसूली का प्रावधान
सूत्रों ने बताया कि इस बार टेंडर की शर्तों में एक दिलचस्प और नई शर्ते जोड़ी जा रही है। इसके मुताबिक आमंत्रित निविदा में एल-1 प्रदायदाता यदि सामग्री की सप्लाई नहीं कर पाता है तो एल-2 को संबंधित सामग्री का वर्क आर्डर दिया जाएगा किन्तु किंतु के अंतर को एल-1 से वसूली की जाएगी। एक रॉ मटेरियल के कारोबारी का कहना है कि यदि एल-1 से वसूली करने का इतना ही अधिकार चाहिये तो पहले गत 5 सालों के टेंडर में दर्ज मात्रा और ख़रीदी मात्रा की जांच कराई जाए, ताकि भ्रष्ट अधिकारियों के द्वारा किए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो सके।
Views Today: 2
Total Views: 252