अकेले शिवपुरी वन वृत में 87 हजार और ग्वालियर में 17 हजार हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण की चपेट में

 

प्रदेश में वन भूमि पर हो रहे कब्जे को लेकर मंथन नहीं बन पाया एक्शन प्लान

– दो दिन बैठे और कोरे आश्वासन दे गए एसीएस

गणेश पांडे, भोपाल। प्रदेश की वन भूमि हो रहे बेहताश अतिक्रमण को हटाने के लिए आईएफएस अफसरों को उम्मीद थी कि अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल की ओर से शासन स्तर पर एक्शन प्लान को अंतिम रूप देंगे। अतिक्रमणकारियों मुकाबला करने के लिए अस्त्र-शस्त्र और फ़ोर्स उपलब्ध कराने का आश्वासन देंगे किन्तु वे मौन साधकर चले गए। जबकि अतिक्रमण की भयावह स्थिति का अंदाजा इस बात लगाया जा सकता है की अकेले शिवपुरी वन वृत में 87 हजार और ग्वालियर में 17 हजार हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण की चपेट में है। ये तो केवल वन वृत की स्थिति है। प्रदेश में 16 वन वृत है। अतिक्रमण के मामले सबसे विकट स्थिति खंडवा, बुरहानपुर, देवास, बैतूल, सीधी, शहडोल, मंडला, डिंडोरी, होशंगाबाद समेत करीब दो दर्जन से अधिक वन मण्डलों में बनी हुई है। खंडवा और बुरहानपुर में पूर्व में गोलियां भी चल चुकी है। समस्या जस की तस बनी हुई है। राजनितिक संरक्षण में अतिक्रमणकारियों के हौसले इतने बुलंद है कि उन्होंने जेसीबी और अन्य वाहनों और प्रशासनिक अफसरों पर पथरावकर उनके हौसले पस्त कर दिए। इस घटना के बाद फिलहाल अतिक्रमण हटाने की शिथिल पड़ती नजर आ रही है। वन भवन की नये भवन में बैठकर एसीएस अपने निजी एजेंडा बांस मिशन को लेकर टाइम लिमिट की बैठक पर बैठक करते जा रहे है। जबकि मंथन के दौरान यह तथ्य भी आया कि अतिक्रमण के मुद्दे पर टाइम लिमिट की बैठक में एक्शन और उसके परिणाम पर डिसक्शन हो।

शिवपुरी/ग्वालियर में बढ़ते अतिक्रमण के मूलभूत कारण

स्थानीय जनता की भूमि की बढ़ती हुई आवश्यकता।

-वन क्षेत्र में स्थित ग्रामों में रोजगार के वैकल्पिक साधनों का अभाव।

-वन संसाधनों के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव।

– संयुक्त वन प्रबंधन समितियों का निष्क्रिय होना।

-अतिक्रमण की रोकथाम के लिए फ्रंट लाईन स्टाफ के रूप में बीट गार्ड का अकेले पड़ जाना।

-अनेक स्थानों पर सीमावर्ती किसानों द्वारा समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा अतिक्रमण बढाया जाना।

– संवेदनशील वनक्षेत्रों में वन सीमा का स्पष्ट न बने होना तथा मुनारे का न बना होना।

– अतिक्रमणकारियों का संगठित होना।

-अतिक्रमणकारियों का स्वाभाविक, राजनीतिक संरक्षण।

-अतिक्रमण रोकने की कार्यवाही में अतिक्रमणकारियों का सश्क्त प्रतिरोध तथा वन अमले की असहायता।

-वन अमले का सूचना तंत्र न विकसित होना।

-अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही में लॉ एवं आर्डर की स्थित में स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस का प्रभावी सहयोग न प्राप्त हो पाना।

शिवपुरी/ग्वालियर वन वृत्त विभागीय हकीकत

उप वन मण्डलाधिकारी, एसडीओ (पी) तथा एसडीएम स्तर पर टास्क फोर्स का न होना।

-रेंज ऑफिसर, तहसीलदार तथा थानाप्रभारी स्तर पर टास्क फोर्स का न होना।

-स्थानीय वन चौकियों में समुचित व्यवस्था का अभाव।

– वन अमले की कमी तथा विभिन्न स्तरों पर फ्रंटलाईन स्टाफ में पदों का रिक्त होना।

-बेदखली की कार्यवाही हेतु परिक्षेत्र स्तर पर आवश्यक संसाधनों का अभाव।

-वनमण्डल स्तर पर अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन तथा बजट का अभाव।

– विभिन्न स्तर पर अधिकारियों द्वारा की जा रही बीट जांच गम्भीरतापूर्वक न करना।

– सीमावर्ती राज्यों के लोगों का अनाधिकृत प्रवेश।

-अतिक्रमण के प्रकरणों का न्यायालय में प्रभावी तरीके से प्रस्तुतीकरण न होना।

-अतिक्रमण के प्रकरणों में न्यायालय से सजा होने पर लम्बा समय लगना तथा कम प्रकरणों में सजा हो पाना।

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