फसल विविधीकरण भूमि को बनाये उपजाऊ

नर्मदापुरम:- नर्मदापुरम जिले में एक प्रकार का फसल चक्र (धान-गेहूँ-मूंग) के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति दिन प्रति कम होती जा रही है जिसका प्रमुख कारण जिले में फसल विविधीकरण का ना होना हैं। लगातार धान गेहूं के कारण मिट्टी लगातार कठोर होती जा रही हैं। जिसके कारण उत्पादन स्थिर या धीरे धीरे कम होता हैं। इन सब समस्याओं का हल फसल विविधीकरण हैं।  वर्तमान समय में किसान भाइयों की सोयाबीन तथा उड़द की फसल पक कर तैयार हो रही हैं। किसान भाइयों से अनुरोध हैं कि अपने प्रक्षेत्र में गेहूँ की बजाय सरसों की खेती करे। वर्तमान में सरसों की फसल किसानों के लिए लाभ का धंधा बन कर उभर रही हैं। सरसों की फसल लगाने का उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 25 अक्टूबर उचित समय होता हैं। सरसों की फसल एक उचित फसल चक्र को दर्शाता हैं जैसे एक खाद्द्यान फसल के बाद तिलहन फसल तथा उसके बाद दलहन फसल। इस प्रकार का फसल चक्र मिट्टी की उर्वरता एवं पर्यावरण को संतुलित बनाये रखता हैं। सरसों की खेती के लिए उपयुक्त पेरामीटर –

1.    बुवाई का समय –  15 अक्टूबर से 20 अक्टूबर

2.    मिट्टी – लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में इसका उत्पादन आसानी से हो जाता हैं। जल भराव वाली मिट्टी उपयुक्त नहीं होती हैं। 

3.    खेत की तैयारी – बेहतर अंकुरण के लिए अच्छी जुताई वाली साफ और अच्छी तरह से भुरभुरी बीज क्यारी की जरूरत होती है। पहले गहरी जुताई करके भूमि को अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उसके बाद दो क्रॉस हैरोइंग करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत से खरपतवार और ठूंठ अच्छी तरह से हटा दिए गए हों और मिट्टी में पर्याप्त नमी हो।

4.    बीज दर – 1.5-2 kg प्रति एकड़

5.    खाद एवं उर्वरक – FYM 5-8 टन प्रति एकड़ एवं 25-30 kg नत्रजन, 20-25 kg फॉस्फोरस तथा 15-18 kg पोटाश की आवश्यक होती हैं।

6.    सिचाई – फूल खिलने से पहले और फली भरने की अवस्था में दो सिंचाई लाभदायक होती है।

7.    उन्नत किस्मे – DRMRIJ-31 (गिरिराज), DRMRIC 16-38 (ब्रजराज), DRMR 2017-15 (राधिका), RH-725,  RH-761 आदि

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