संविधान की शपथ लेकर माननीय करते हैं, असंवैधानिक नियुक्तियां
प्रहलाद शर्मा, हरदा। हेलो मैं सांसद प्र्रतिनिधि बोल रहा हूं! अब हमारे बीच विधायक प्रतिनिधि माननीय फलाने लाल उपस्थित हो रहे हैं। आज की समीक्षा बैठक में जिलाधीश के समक्ष माननीय सांसद प्रतिनिधि विकास कार्यों की समीक्षा करेंगे। ऐसे न जाने कितने जुमले आए दिन देश और प्रदेश में विभिन्न प्रशासनिक विभागों में और स्थानीय निकायों में होने वाली बैठकों दौरान सुनने-देखने को मिलते हैं। यह कोई आजकल की बात नहीं है, बल्कि वर्षों से यह प्रथा बदस्तूर चली आ रही है। सांसद, विधायक प्रतिनिधि की तर्ज पर ही अब जिला पंचायत, जनपद पंचायत, नगरपालिका और ग्राम पंचायत तक में निर्वाचित पदाधिकारियों के प्रतिनिधि होने लगे हैं। एक ही जिले में ऐसे न जाने कितने प्रतिनिधि देखने को मिलते हैं। इन प्रतिनिधियों के अलावा अध्यक्ष पति, पार्षद पति, सरपंच पति भी विभागीय कार्य व्यवस्थाओं में अपना बखूबी हस्तक्षेप बनाए होते हैं। आखिर जो खुद जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होता है, क्या उसे अपनी कार्यव्यवस्थाओं के संचालन और विभागीय कार्यों में सीधे तौर पर अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हस्तक्षेप करने के लिए ऐसे प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार है? जब सांसद और विधायक प्रतिनिधि सीधे-सीधे प्रशासनिक आला अधिकारियों द्वारा आयोजित बैठकों में अपने माननीयों के स्थान पर बतौर उनके प्रतिनिधि उपस्थित होकर अपनी राय मशवरा, सहमति-असहमति तथा जनता के हवाले से अपनी इच्छाओं को अधिकारियों पर थोपते हुए उसे कानूनीजामा पहनाने का काम करते हैं, तो वह संवैधानिक रूप से कितना उचित है? जब सांसद-विधायक अपनी व्यस्तता के चलते अपने ऐसे ही प्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की बैठकों में शामिल होने और अपनी अनुपस्थिति में आयोजित समारोह में अपने स्थान पर सम्मान हासिल करने का अधिकार प्रदान करते हैं, तो सहज ही एक और प्रश्न उभरकर आता है। क्या यह माननीय लोकसभा और विधानसभा में भी स्वयं उपस्थित होने के बजाय अपने ऐसे प्रतिनिधि भेज सकते हैं? जब लोकसभा और विधानसभा में प्रतिनिधि भेजने का प्रावधान नहीं है, तो फिर अपने क्षेत्र की प्रशासनिक बैठकों में किस अधिकार के तहत उनके प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते हैं? स्वयं जनता द्वारा निर्वाचित होने के पश्चात लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा में संविधान अनुकूल कार्य करने की शपथ लेते हैं, तो फिर स्वयं ही संविधान के विपरीत प्रतिनिधि नियुक्त करने का कार्य कैसे करते हैं? भारत सरकार के संसदीय कार्य मंत्रालय तथा राज्यसभा सचिवालय द्वारा लिखित रूप से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि सांसद और विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। ऐसी कोई नियुक्ति निर्वाचित जनप्रतिनिधि अपने अधिकार से सीधे तौर पर नहीं कर सकता है। जब संविधान में प्रावधान ही नहीं है, तो फिर भला यह स्पष्ट हो जाता है कि देश हो चाहे प्रदेश, सांसद हो चाहे विधायक ऐेसे किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा नियुक्त किए गए सांसद-विधायक प्रतिनिधि सीधे तौर पर फर्जी अवैध हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब ऐसा कोई संवैधानिक या कानूनी प्रावधान नहीं है, तो फिर कानून के रखवाले कहलाने वाले जिलों के जिलाधीश इस तरह की नियुक्तियों को कैसे वैध करार देते हैं। क्योंकि सांसद या विधायक द्वारा जिसे भी अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता है, तो उसकी नियुक्ति का बकायदा पत्र अपने उस अधिकृत लेटर पेड पर जिसके उपर केंद्र सरकार या राज्य सरकार का मोनो लगा होता है, उस पर लिखकर जिलाधीश को ही प्रेषित करते हैं। इनता ही नहीं, बल्कि उप पत्र में उल्लेखित होता है कि अपने अधीनस्त सभी विभागा अधिकारियों को तत संबंध में अवगत कराया जाए। तत्पश्चात जिला कलेक्टर प्रशासनिक स्तर पर होने वाली विभिन्न बैठकों की सूचनाएं तथा उसके लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ ही इन सांसद-विधायक प्रतिनिधियों को भी बकायदा आमंत्रित करते हैं। क्या इन उच्च पदासीन आईएएस, आईपीएस और आईएफएस जैसी डिग्रीधारी अधिकारियों को संवैधानिक व कानूनी प्रावधानों की जानकारियां नहीं है? एक असंवैधानिक नियुक्ति को वह भला किस आधार पर वैधता का जामा पहनाकर उन्हें सम्मानित करते हैं? निश्चित ही यह मुद्दा जहां प्रशासनिक अधिकारियों के लिए विचारणीय है, तो वहीं जनता के बीच बहस का विषय भी हो सकता है।
खैर वैसे तो यह राजनीतिक पद और रसूक के चलते नियुक्तियों का खेल वर्षों से चलता आया है, लेकिन हाल ही में भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री तथा टीकमगढ सांसद वीरेंद्र कुमार खटिक द्वारा एक साथ अपने लोकसभा क्षेत्र में लगभग १५० से अधिक सांसद प्रतिनिधि नियुक्त करने तथा केंद्रीय मंत्री एवं बैतूल-हरदा लोकसभा क्षेत्र के सांसद डीडी उईके द्वारा पूर्व मंत्री कमल पटेल को अपना सांसद प्रतिनिधि बनाने के बाद यह एक चर्चा का विषय बन गया है। एक लोकसभा क्षेत्र में लगभग ८ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। सांसदों द्वारा इन क्षेत्रों में प्रत्येक विभाग के लिए अपने अलग-अलग प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते हैं। ठीक इसी तरह विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र में प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं। अब जनता ने तो एक विधायक, एक सांसद चुना है, लेकिन इसके बाद पूरे क्षेत्र में रक्तबीज की तरह इन माननीयों के इतने प्रतिनिधि हो जाते हैं, कि अधिकारी और जनता समझ ही नहीं पाते हैं कि वह किसे आमंत्रित करें और किसे नहीं। आखिर राजनीतिक स्तर पर दरी उठाने से लेकर पार्टी का झंडा लहराने और माननीयों की जय-जयकार करने वाले मैदानी कार्यकर्ताओं को नवाजने का यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? कब तक संविधान की शपथ लेकर संविधान की धज्जियां उड़ाई जाती रहेगी?