अनोखा तीर बुरहानपुर:-जिला मुख्यालय के टीबी अस्पताल में बीते करीब एक पखवाड़े से दवाइयां खत्म हैं। जिसके चलते टीबी के मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। मरीज रोजाना सरकारी अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें दवा नहीं मिल पा रही है। मरीजों का कहना है कि इस रोग में नियमित दवा लेना जरूरी होता है। सरकार ने टीबी की दवा को खुले बाजार में प्रतिबंधित कर दिया है। जिसके चलते वे बाजार से भी दवा नहीं खरीद पा रहे हैं। यदि जल्द दवा उपलब्ध नहीं हुई तो उन्हें नए सिरे से कोर्स शुरू करना पड़ेगा।
ज्ञात हो कि बुरहानपुर जिले में टीबी के सर्वाधिक 680 मरीज हैं। इस संबंध में नईदुनिया ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. राजेश सिसोदिया से बात की तो उनका कहना था कि प्रदेश स्तर पर ही स्टाक उपलब्ध नहीं है। उच्चाधिकारियों ने अगले चार-पांच दिन में दवा की आपूर्ति करने का आश्वासन दिया है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के अधिकांश जिलों में यही स्थिति है। उल्लेखनीय है कि सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज और मुफ्त दवाइयां उपलब्ध कराने को लेकर प्रदेश के मुखिया डा. मोहन यादव ने स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं। बावजूद इसके स्टाक समाप्त होने से पहले विभागीय अफसरों ने दवा नहीं मंगवाई। जिसका खामियाजा टीबी के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
बच्चों और प्राथमिक उपचार वाले मरीजों की दवा उपलब्ध
सीएमएचओ डा. राजेश सिसोदिया ने बताया कि टीबी अस्पताल में बच्चों और प्राथमिक उपचार वाले मरीजों की दवा का स्टाक है। इसके साथ ही उन मरीजों की दवा भी है जो रजिस्टेंट होते हैं और उन पर सामान्य दवा काम नहीं करती। जिन मरीजों को चार से छह माह का कोर्स दिया जा रहा है, उनसे संबंधित दवाएं ही उपलब्ध नहीं है।
ऐसे मरीजों की संख्या चार सौ से ज्यादा बताई जा रही है। मंगलवार को कुछ परेशान मरीज कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महासचिव अजय रघुवंशी के पास भी पहुंचे थे। रघुवंशी ने इस पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए भाजपा नेताओं और जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे पहले मरीजों के इलाज की चिंता करें।
पावरलूम व धूल बन रही कारण
शहर में टीबी के मरीजों की बढ़ती संख्या के पीछे रहवासी बस्तियों में चल रहे पावरलूम और उड़ते धूल के गुबार हैं। पावरलूम चलने पर धागे के बारीक रेशे हवा के साथ मिल जाते हैं। यही रेशे सांसों के माध्यम से बुनकरों व आसपास रहने वालों के फेफड़ों तक पहुंचते हैं। लगातार यह प्रक्रिया जारी रहने के कारण लोग जल्दी ही टीबी के मरीज बन जाते हैं।
इसके अलावा जलावर्धन योजना और सीवरेज सिस्टम के लिए खोदी गई सड़कों के साथ ही हाइवे सहित कई मार्गों में कच्चे फुटपाथ होने के कारण बड़ी मात्रा में धूल के कण हवा में मिल रहे हैं। ये भी सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंच कर लोगों रोगी बना रहे हैं। अब तक इन दोनों प्रमुख कारणों को समाप्त करने की पहल न तो जिला प्रशासन और नगर निगम ने की है और न ही जनप्रतिनिधियों ने कोई ठोस कार्ययोजना तैयार की है।
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