नर्मदा का संरक्षण और किसानों की समृद्धि  आम के आम गुठलियों के दाम 

 

शहादा (महाराष्ट्र)। मध्य प्रदेश के हरदा जिले के नर्मदा तट हंडिया से प्रारंभ हुई नर्मदा पर्यावरण संरक्षण यात्रा आज तीसरे दिन बड़वानी जिले होते हुए महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के शहादा पहुंची। इस दौरान विभिन्न स्थानों पर ग्रामीणों के बीच संगोष्ठी आयोजित कर नर्मदा तथा उसकी सहायक नदियों के संरक्षण एवं वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण करते हुए किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने विषय पर चर्चा की गई। पर्यावरण प्रेमी गौरीशंकर मुकाती की पहल पर प्रारंभ हुई इस यात्रा का जगह-जगह लोगों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। आज बड़वानी जिला मुख्यालय पर हुई संगोष्ठी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक आशीष अचकन, बनवासी कल्याण परिषद के आशीष मेहरा, संघ के पर्यावरण जिला प्रमुख पीयूष रावत, नगर पर्यावरण प्रमुख महादेव बड़ोले, धर्म जागरण प्रमुख किशोर चौहान तथा ग्रीन वैली एजुकेशन वेलफेयर समिति के अध्यक्ष नरेश त्रिवेदी सहित विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों से नर्मदा संरक्षण तथा वृक्षारोपण को लेकर चर्चा की गई। इस दौरान वरिष्ठ संपादक प्रहलाद शर्मा ने कहां कि निरंतर बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को लेकर आज समूचा विश्व परेशान है। इसके प्रभाव से आप, हम सभी कहीं न कहीं प्रभावित हो रहें हैं। हमने बीते वर्षों में कोरोना संक्रमण काल में ऑक्सीजन के महत्व को भी देखा है। वही लॉकडाउन के चलते हमारा पर्यावरण और हमारी नदियां कितनी शुद्ध नजर आ रही थी, लेकिन आज जहां हमारी आस्था से जुड़ी नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रहा, तो वहीं सांस लेने को शुद्ध हवा भी नहीं मिल रही है। ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में किसानों की भूमि पर वृक्षारोपण कर जहां इन नदियों को सदा निरा बनाया जा सकता है, तो वहीं दूसरी ओर किसानों की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इस अवसर पर डॉ रामकृष्ण दुगाया ने बताया कि किस तरह किसान इस अभियान का हिस्सा बन कर पर्यावरण के क्षेत्र में अपना योगदान देते हुए आर्थिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश के ही हरदा, नर्मदापुरम, सीहोर जिले में इस दिशा में पर्यावरण प्रेमी गौरीशंकर मुकाती द्वारा बड़े पैमाने पर कार्य किया गया है। समाजसेवी सुमन सिंह ने बताया कि छोटे-छोटे प्रयासों से हम किस तरह पर्यावरण के इस विकराल संकट को दूर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी आस्था का केंद्र नर्मदा को संरक्षित रखने में सरकार या कोई संस्था उतनी भूमिका निर्वाह नहीं कर सकती, जितना कि स्थानीय स्तर पर रहने वाले लोग तथा आस्था के वशीभूत होकर आने वाले लोग कर सकते हैं। इसी विषय को लेकर मध्य प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे ग्राम खेतिया में भी ग्रामीणों तथा किसानों से चर्चा की गई। इस दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता श्याम हरबोला, मोहन निकुम, भाजपा महामंत्री अतुल निकम, हीरालाल सचिति, पार्षद सचिन पटेल, गोविंद चौधरी आदि ने इस उद्देश्य परख यात्रा की सराहना करते हुए पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपने गांव तथा आसपास के गांव में संगोष्टियां आयोजित कर लोगों को जागृत कर वृक्षारोपण करने की बात कही। प्रगतिशील कृषक अरविंद सारन ने यात्रा के उद्देश्य तथा भविष्य की कार्ययोजना पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि किस तरह किसान वृक्षारोपण के माध्यम से नर्मदा संरक्षण और अपनी आर्थिक समृद्धि एकसाथ कर सकते हैं। अर्थात आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है। इस अवसर पर भारतीय मजदूर संघ के नर्मदापुरम संभाग प्रभारी जितेन्द्र सोनी, कैलाश विश्वकर्मा, बलराम पटेल दावठा, श्रीमती मनोरमा शर्मा आदि यात्रियों ने भी अपने विचार साझा किए।

 

यात्रा अनुभव ____

वह सफाई कर रहे ,वो खुदाई कर रहे

इस यात्रा दौरान मध्य प्रदेश के ही बड़वानी में नर्मदा तट पर अच्छे और बुरे दोनों ही नजारे देखने को मिले। संगोष्ठी दौरान स्थानीय लोगों ने हमारे सामने नर्मदा किनारे लगे भारी तादाद में ईंट भट्टों के चलते मिट्टी की खुदाई करने को लेकर अपनी चिंता जताई थी। जब हम लोग नर्मदा के तट पर पहुंचे तो वहां देखा कि लगभग 1 किलोमीटर से अधिक के दायरे में भारी तादात में लगे ईंट भट्टे और मशीनों से होती मिट्टी की खुदाई नर्मदा के तट को तार तार करते नजर आई। वहीं दूसरी ओर हमारी टीम की सहयात्री हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग की रिसर्चर कुमारी सिमरन शर्मा ने बताया कि हम जिस उद्देश्य को लेकर यात्रा कर रहे हैं उसका सुखद नजर भी इस तट पर देखने को मिला। यहां कुछ स्थानी महिलाएं जहां हाथ में झाड़ू लेकर साफ-सफाई में जुटी हुई थी, तो वही कुछ गरीब महिलाएं हाथ से बनाए गए आटे के दिए श्रद्धालुओं को बेचते हुए भी नजर आई। नर्मदा तट पर साफ सफाई और आस्था के वशीभूत होकर कागज या अन्य सामग्रियों से निर्मित दीपों के दान करने के बजाय आटे के दिये का प्रयोग करने की जो समझाइए हम लोगों को दे रहे हैं, वह कार्य बड़वानी के नर्मदा तट पर पहले से ही संचालित होता देखकर मन को प्रसन्नता हुई।

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